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व्रत कथा कोष
मेरू संबंधी षोडश जिनालयेभ्यो नमः" इस मन्त्र का जाप त्रिकाल करना चाहिये । द्वितीय मेरू सबंधी व्रतों के दिनों में "ॐ ह्रीं विजय मेरू संबंधी षोडश जिनालयेभ्यो नमः" तृतीय मेरू संबंधी व्रतों के दिनों में "ॐ ह्रीं अचल मेरू संबंधी षोडश जिनालयेभ्यो नमः" चतुर्थ मेरू संबंधी व्रतों के दिनों में “ॐ ह्रीं मंदिर मेरू संबंधी षोडश जिनालयेभ्यो नमः" और पंचम मेरू संबंधी व्रतों के दिनों में "ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरू संबंधी षोडशाजिनालयेभ्यो नमः" मन्त्र का जाप करना चाहिए।
पारणा के दिनों में एक अनाज का ही प्रयोग करना चाहिए । फलों में सेव, नारियल, आम, नारंगी, मौसमी का उपयोग कर सकते हैं । रात्रि जागरण करना भी आवश्यक है । व्रत के दिनों में भगवान की पूजा करनी चाहिए । पंच मेरू की पूजा के साथ त्रिकाल-चौबीसी, विद्यमान विंशति तीर्थंकर और पंचपरमेष्ठी की पूजा करनी चाहिए । शील व्रत का पालन भी आवश्यक है।
इस व्रत का फल-लौकिक और पारलौकिक अभ्युदय की प्राप्ति के साथ स्वर्गसुख और विदेह में जन्म होता है । तीन चार भव में जीव निर्वाण प्राप्त कर लेता है। व्रततिथि प्रमाण के सम्बन्ध में विभिन्न प्राचार्यों के मत--
"कर्नाटक प्रान्ते रविमितघटी तिथि: ग्राह्या । मूलसंधेरसघटी तिथि: ग्राह्या । जिनसेनवाक्यतः काष्ठासंघे त्रिमुहूर्तात्मिका तिथिः ग्राह्या । तिथिग्रहीता वसुपलहीनं द्विघटीमितं मुहूर्तमित्युच्यते ।”
अर्थ-कर्नाटक प्रान्त में बारह घटी प्रमाण व्रत की तिथि ग्रहण की गई है । मूलसंघ के प्राचार्यों ने छह घटी प्रमाण व्रत तिथि को कहा है। जिनसेनाचार्य के अनुसार काष्ठासंघ में तीन मुहूर्त प्रमाण तिथि का मान ग्रहण किया गया है। आठ पल हीन दो घटी अर्थात् एक घटी बावन पल का एक मुहूर्त होता है।
'विवेचन-व्रत तिथि के प्रमाण का निश्चय करने के संबंध में जैनाचार्यों - में थोड़ा मतभेद है । भिन्न-भिन्न देशों के अनुसार व्रत के लिए भिन्न-भिन्न प्रमाण