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व्रत कथा कोष
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व्रततिथि निर्णय के लिए अन्य मतमतान्तर इति दमोदर कथितं रसघट्यां व्रतं नीतं देशसौराष्ट्र-शान्ति कृतमध्यदेशेषु विख्यातं कर्णाटके द्राविडे देशे च प्रसिद्धम् ।
अर्थ-इस प्रकार दामोदर के द्वारा कथित रसघटी प्रमाण तिथि व्रत के लिए ग्राह्य है । यह मत सौराष्ट्र-गुजरात, शान्तिकृत-उत्तरप्रदेश और बिहार प्रान्त का उत्तर पूर्वीय भाग, मध्य प्रदेश में प्रसिद्ध तथा कर्नाटक और द्राविड देश में मान्य है।
विवेचन-दामोदर नाम के एक प्राचार्य हुए हैं, जिन्होंने व्रततिथि का प्रमाण छः घटी माना है । इन्होंने तिथिनिर्णय नाम का एक प्रसिद्ध ग्रन्थ लिखा है। इनके रसघटी प्रमाण मत का उद्धरण इन्द्रनन्दी संहिता में भी पाया जाता है तथा इन्द्रनन्दी प्राचार्य ने स्वयं इसका उल्लेख किया है। तिथि प्रमाण के लिए अनेक मतभेदों के होनेपर भी बहुमत से छः घटी मान ही ग्राह्य माना गया है । यह मत गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और द्राविड देश में मान्य है । यद्यपि कर्नाटक देश में सामान्यतः तिथिमान बारह घटी मानने का उल्लेख किया गया है, परन्तु विशेषरुप से जैनाचार्यों ने छः घटी प्रमाण को ही ग्राह्य बताया है । तथा तिथि का तत्वभाग पन्द्रह घटी प्रमारण तक माना है ।
कर्नाटक देश के जनेतर आचार्यों ने व्रततिथि का मान समस्त तिथि का दशमांश अथवा दिनमान का षष्ठाँश माना है । इसका समर्थन प्राचार्य के वचनों से भी होता है । यह मत जैनों में तामिल प्रदेश में आदरणीय समझा जाता था। इन्द्रतन्दी और माघनन्दी प्राचार्यों के वचनों से भी इसकी पुष्टि होती है। अभ्रदेव के वचनों से भी प्रतीत होता है कि सूक्ष्म विचार के लिए व्रत तिथि का मान समस्त तिथि का दशमांश या दिनमान का षष्ठांश मानना चाहिए। जैसे अजित सम्पत्ति का षष्ठांश दान में दिया जाता है, उसी प्रकार दिनमान का षष्ठांश व्रत के लिए ग्राह्य होता है । उदाहरण-बुधवार को सप्तमी १५ घटी १० पल है, गुरुवार को अष्टमी ७ घटी ५४ पल है । यहां यह देखना है कि माघनन्दो और इन्द्रनन्दी के सिद्धान्तानुसार गुरुवार की अष्टमी व्रत के लिए ग्राह्य है या नहीं ? अहोरात्र मान में से