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व्रत कथा कोष
SINEmmany माना गया है। कर्नाटक प्रान्त में बारह घटी व्रत तिथि के होने पर ही व्रत के लिए तिथि ग्राह्य बताई है।
श्रीपाचार्य ने अपनी ज्योतिर्ज्ञान विधि में व्रत तिथि का विचार करते हुए कहा है कि ये अपने सम्पूर्ण प्रमाण के पंचमांश हो वही व्रत के लिए ग्राह्य होती है। श्रीधराचार्य के व्रतविचार से प्रतीत होता है कि बारह घटी प्रमाण तिथि का मान मध्यम तिथि के हिसाब से लिया गया है। दक्षिण भारत में जैनेतर विद्वानों में भी श्रीधराचार्य के मत का आदर है ।
जब मध्यम तिथि का मान साठ घटी मान लिया जाता है उस समय पञ्चमांश बारह घटी ही आता है । किन्तु स्पष्ट मान १२ घटी शायद ही कभी आवेगा । गणित की दृष्टि से स्पष्ट मान निम्म प्रकार लाना चाहिए।
उदाहरण-गुरूवार को पञ्चमी १५ घटी २० पल है तथा बुधवार को चतुर्थी १८ घटी ३० पल है । यहां पञ्चमी का कुल मान निकाल कर यह निश्चय करना है कि गुरूवार को पञ्चमी श्रीधराचार्य के मत से ग्राह्य हो सकती है या नहीं ? तिथि का कुल मान तभी मालूम हो सकता है जब एक तिथि के अन्त से लेकर अहोरात्र पर्यन्त जितना मान हो उसे पंचांग में अंकित तिथिमान में जोड़ दिया जाय । यहां पर पञ्चमी का मान निकालना है । बुधवार को चतुर्थी की समाप्ति १८/३० के उपरान्त हो जाती है। अर्थात् पञ्चमी तिथि बुधवार को सूर्योदय के १८/३० घट्यात्मक मान के उपरान्त प्रारंभ हो गई है । अतः बुधवार को पञ्चमी का प्रमाण-(६०/०)-(१८/३०)= (अहोरात्र-वर्तमान तिथि) = ४२/३० घट्यादि मान बुधवार को पञ्चमी का हुआ । गुरूवार को पंचमी १५ घटी २० पल है । अतः दोनों मानों को जोड़ देने पर पंचमी तिथि का कुल प्रमाण निकल पायेगा। (४१/३०)+(१५/२०)= (५६/५०) । इसका पंचमांश निकालें तो(५६/५७) ५=११/२२ अर्थात् ११ घटी २२ पल प्रमाण पंचमी यदि सूर्योदयकाल में होगी तभी व्रत के लिए ग्राह्य मानी जायेगी। परन्तु हमारे उदाहरण में १५ घटी २० पल प्रमाण पंचमी "गुरूवार को उदयकाल में, बतायी गई है, जो कि