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卐 तमानभाववैश्यरूण तमनुभवति । भूतार्थदर्शिनस्तु स्वमतिनिपाविवशुद्धनयानुबोधमात्रोपजनितात्मकर्मविवेकतया स्वपुरुषा
काराविर्भाक्तिसहजैकनायकस्वभावत्वात् प्रयोतमानकज्ञायकभावं तमनुभवति । तदत्र ये भूतार्थमाश्रयंति तएवं सम्यक् । 卐 पश्यंत सम्यग्दृष्टयो भवंति न पुनरन्ये कतकस्थानीयत्वात् शुद्धनयस्यातः प्रत्यगात्मदर्शिभिर्व्यवहारमयो नानुसव्यः ॥१३॥ अथ च केचित्कदाचित्सोपि प्रयोजनवान् । यतः
अर्थ-व्यवहारनय है सो अभूतार्थ है । बहुरि शुद्धनय है सो भूता है। यह ऋषीश्वर-5 निने दिखाया है। तहां जो जीव भूतार्थ· आश्रित भया है सो जीव निश्चयकरि सम्यग्दृष्टि - होय है।
टीका-व्यवहारनय है सो सर्व ही अभूतार्थ है तातें अविद्यमान असत्य अभूतार्थ है ताहि " प्रगट करे है । बहुरि शुद्धनय है सो एकहीं है सो भृतार्थ है। तातें विद्यमान सत्यरूप अर्थ
प्रगट करे है । सो ही दृष्टांतकरि दिखाये है। जैसे प्रबलकर्दमके मिलनेकरि तिरोहित कहिये ।। आच्छादित भया है स्वाभाविक एक निर्मलभाव जाका ऐसा जो जल ताके पीवनेवाले पुरुष हैं । ते घणे तौ जलका अर कर्दमका भेद नाहीं करते संते तिस जलकू मलिनहीकू पीवै है। बहुरि केई जीव अपने हस्ततें बखेर डारया जो कतक कहिये निर्मली ताकै पटकनेमात्रेकरी ही भया जो कर्दमका अर जलका भेद तिसपणाकरि जामें अपना पुरुषाकार दिखाई है ऐसा प्रगट भया जो5 स्वाभाविक जलस्वभावरूप निर्मलभाव ताहीकू पीवे है। तैसें ही प्रबलकर्मका संवलन कहिये ... मिलना संयोग होना ताकरि आच्छादित भया है स्वाभाविक एक ज्ञायकभाव जाका ऐसा जोक - आत्मा ताकै अनुभव करनेवाले पुरुष हैं, ते आत्माका अर कर्मका भेद नाहीं करते व्यवहारविर्षे ।।
लिमोहित भया है हृदय जिनिका ते प्रगटमान है भावनिका विश्वरूपपणा अनेकरूपपणा जाकै । 卐 ऐसा जो अशुद्ध आत्मा तिसहीकू अनुभवे है । बहुरि भृतार्थ जो शुद्धनय ताके देखनेवाले हैं। तेज
अपनी बुद्धिकरि पातन करी जो शुद्धनय ताकै असनार ज्ञान होनेमात्रकरी भया जो आत्माका "
अर कर्मका भेद, तिसपणाकर अपने पुरुषाकाररूप स्वरूपकरि प्रगट भया जो स्वाभाविक एक) 1- ज्ञायकभाव तिसपणाकरि प्रद्योतमान है, प्रकाशमान है, एक ज्ञायकभाव जाम, ऐसा शुद्ध आत्माकू ...