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कहा है
अत्र शृङ्गारलक्षणं रससुधाकरेविभावैरनुभावैश्च स्वोचितैर्व्यभिचारिभिः । नीता सदस्यरस्यत्वं रतिश्शृङ्गार उच्यते ॥ ( रसार्णव 2 / 171 ) रतिरिच्छाविशेषः, तच्चोक्तं तत्रैवयूनोरन्योऽन्यविषयस्थायिनीच्छा रतिस्स्मृता । ( रसार्णव 2 / 108 पू.0) इससे यह स्पष्ट होता है कि मल्लिनाथ के समय तक शिङ्गभूपाल का रसार्णवसुधाकर निःसन्देह प्रसिद्धि को प्राप्त कर चुका था । मल्लिनाथ का समय 1422 से 1426 ईसवीय निर्धारित किया गया है। अतः शिङ्गभूपाल मल्लिनाथ के समय 1422 से पहले हुए है।
इन तथ्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि शिङ्गभूपाल का राज्यकाल तथा रचनाकाल 1330 से 1400 ईसवीय के मध्य होना चाहिए।
शिङ्गभूपाल की कृतियाँ - शिङ्गभूपाल एक सफल शासक राजा होने के साथ महान् आचार्य और उत्कृष्ट पण्डित भी थे। ये साहित्य के अतिशय प्रेमी थे जिसका निदर्शन हमें रसार्णवसुधाकर से स्वयं प्राप्त हो जाता है। इनके द्वारा रसार्णवसुधाकर में उदाहरण के रूप में दिये गये स्वरचित पद्य उनकी उत्कृष्ट काव्यकला के प्रत्यक्ष उदाहरण है। इनका प्रिय रस शृङ्गार था जिसमें उन्होंने नायिकाओं की विभिन्न अवस्थाओं तथा उनउन दशाओं में उनके मनोभावों का सूक्ष्म तथा स्वाभाविक चित्रण किया है। इसके साथ ही ये सङ्गीतशास्त्र में निष्णात थे । तद्विषयक इनकी सङ्गीतरत्नाकर पर सङ्गीतसुधाकर नामक टीका इनके सङ्गीतज्ञान की उत्कृष्टता का उदाहरण है । सम्प्रति इनके ये ग्रन्थ हैं— (क) शास्त्रीय ग्रन्थ—– 1- रसार्णवसुधाकर, 2 - नाटकपरिभाषा, 3- सङ्गीतरत्नाकर की सङ्गीतसुधाकर नामक टीका । (ख) साहित्यिक ग्रन्थ - 4- कुवलयावली नाटिका और 5- कन्दर्पसम्भव ।
1- रसार्णवसुधाकर - इसका विस्तृत विवेचन इसी ग्रन्थ की भूमिका में ही किया जाएगा।
2- नाटकपरिभाषा - यह 289 श्लोकों वाला शिङ्गभूपाल का लघुकाय ग्रन्थ है। इसमें नाम के अनुरूप नाटकविषयक परिभाषिक शब्दों का विवेचन किया गया है। 3- सङ्गीतसुधाकर टीका- शिङ्गभूपाल के सभापण्डित शार्ङ्गदेव ने सङ्गीतरत्नाकर नामक ग्रन्थ की रचना किया है जिसमें सङ्गीतशास्त्र के विविध विषयों पर साङ्गोपाङ्ग विवेचन किया गया है। यह ग्रन्थ सङ्गीतशास्त्र के सम्यग्ज्ञान के लिए सर्वश्रेष्ठ