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तृतीय सर्ग का कथासार गर्भधारण के पश्चात् महारानी सुदक्षिणा के शरीर में गर्भलक्षण प्रकट होने लगे। इससे राजा दिलीप तथा सुदक्षिणा की सखियाँ बहुत प्रसन्न हुई।
इस अवसर पर राजा दिलीप सुदक्षिणा की प्रत्येक इच्छा पूर्ण करते थे और इस बात को पूर्ण चेष्टा करते थे कि सुदक्षिणा का कोई भी इच्छा अपूर्ण न रहे। दूसरे मास में पुंसवन नामक संस्कार किया और चतुर वैद्यों के द्वारा गर्भ का पोषण किये जाने पर, दशवे मास में शुभ मुहूर्त में सुदक्षिणा ने पुत्र को जन्म दिया। राजा ने उदारता पूर्वक खूब दान दिया।
महर्षि वशिष्ठ के तपोवन से आकर जातकर्भ नामक संस्कार करने पर बालक अधिक सुन्दर एवं तेजस्वी हो गया। महाराज दिलीप ने यह जानकर कि शाल तथा युद्ध में सर्वत्र यह पारंगत होगा बालक का 'रघु' नाम रक्खा।
धीरे-धीरे बालक बड़ा होने के साथ ही समस्त शास्त्र तथा शस्त्र-विद्या में मुशिक्षित हो गया। दिलीप ने उसका यशोपवीत संस्कार तथा विवाह करने के पश्चात् उसे युवराज बना दिया। रघु के युवराज होते ही राजा शत्रुओं के लिये दुःसह हो गये और रघु को यक्ष के घोड़े की रक्षा में नियुक्त करके राजा दिलीप ने ९९ अश्वमेध पूरे कर लिये । इसके बाद सौवां यश करने के लिये राजा ने घोड़ा छोड़ दिया। .
इस सौवे यश को सहन न करनेवाले इन्द्र ने सबके सामने से घोड़े को चुरा लिया। घोड़े को न देख सेना सहित रघु किंकर्तव्यविमूढ से, खड़े ही थे कि स्वतः आई हुई नन्दिनी को सामने खड़ी देखा और उसके मूत्र से अपनी आँखें धो डाली, तब उसी क्षण घोड़े को चुराकर ले जाते हुए इन्द्र को देखकर रघु ने ललकारा। इन्द्र रुक गये। रघु ने प्रार्थना की कि आप यशों के रक्षाक होकर इस प्रकार करेंगे तो यज्ञादि कैसे होंगे। तब इन्द्र ने कहा कि मैं ही शतक्रतु हूँ दूसरा नहीं हो सकता । तुम्हारे पिता सौवां यज्ञ करके यह मेरा यश छीनना चाहते हैं। अतः मैने घोड़े का हरण किया है, तुम लौट जाओ, नहीं तो सगर राजा के पुत्रों की जैसी दशा तुम्हारी भी होगी।
रघु ने कहा हे ! भगवन् ! यदि तुम्हारी यही निश्चय है तो शस्त्र उठाओ। मुझे जीवे बिना घोड़ा लेकर नहीं जा सकते हो। यह कहकर रघु ने एक बाण इन्द्र की छाती में मारा। ___ इन्द्र ने भी अत्यन्त क्रोधित होकर एक अमोष वाण रघु की छाती में मारा । पुनः रघु ने एक बाण से इन्द्र की वज़चिहित ध्वला को काट डाला। इससे इन्द्र ने क्रोध में आकर रघु को मारने के लिये वज्र से प्रहार किया। किन्तु जरा सी मूर्जा का अनुभव कर रघु पुनः खना हो