Book Title: Raghuvansh Mahakavya
Author(s): Kalidas Makavi, Mallinath, Dharadatta Acharya, Janardan Pandey
Publisher: Motilal Banarsidass
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रघुवंशमहाकाव्य सामग्री लेकर मेरे पास आ रहा है। पिता की दी हई राजलक्ष्मी न स्वीकार कर इतने वर्षों तक यह कठोर व्रत का पालन करता रहा।
राम के इतना कहते ही इनकी इच्छा जानकर विमान आकाश से भूमि पर उतरा जिसे सारी प्रजा ने आश्चर्य से देखा। तब उस विमान से सुग्रीव का सहारा लेकर विभीषण के दिखाये मार्ग से स्फटिक-सीढ़ियों से राम भूमि पर आये । पहिले कुलगुरु वसिष्ठ को प्रणाम कर उन्होंने भरत की पूजा स्वीकार की और उसके माथे को सूघा । इसके बाद प्रणाम करते हुए वृद्ध मन्त्रियों को कृपापूर्वक देखकर उनसे कुशल पूछी। फिर सुग्रीव और विभीषण का परिचय भरत को कराया और भरत ने उनको प्रणाम किया। इसके बाद भरत लक्ष्मण से मिले और उनको भुजाओं में कस लिया। राम की आज्ञा से सभी वानरों ने मनुष्यरूप धारण किया और हाथियों पर चढ़कर पहाड़ों पर चढ़ने का आनन्द लेने लगे। अनुचरों-सहित राक्षसराज भी राम की
आज्ञा से रथ पर बैठ गये। राम भाइयों-सहित पुनः विमान पर चढ़ गये । भरत और लक्ष्मण से युक्त विमान पर वे ऐसे प्रतीत होते थे जैसे बुध और बृहस्पति से युक्त चन्द्रमा मेघ पर आरूढ़ हो। उस विमान में चढ़ने पर भरत ने सीता को प्रणाम किया। रावण की प्रार्थनाओं को ठुकराकर अखण्ड पातिव्रत को प्रकट करते हुए सीता के चरण और बड़े भाई का अनुसरण करने से जटाओं-वाला भरत का मस्तक, ये दोनों जैसे एक-दूसरे को पवित्र कर रहे थे। इसके बाद प्रजाएँ जिसके आगे चल रही हैं ऐसे विमान से धीरे-धीरे आधे कोस चलते हुए राम ने शत्रुघ्न द्वारा सजाए हुये साकेत के बगीचों में डेरा डाला।