Book Title: Raghuvansh Mahakavya
Author(s): Kalidas Makavi, Mallinath, Dharadatta Acharya, Janardan Pandey
Publisher: Motilal Banarsidass
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चतुर्दशसर्ग का कथासार
राम का प्रयोध्या - श्रागमन
बगीचे में जाने पर राम-लक्ष्मण ने दशरथं के मरने से माताओं ( कौशल्यासुमित्रा) को आश्रय-वृक्ष के कट जाने पर मुरझाई हुई लताओं जैसी देखा । दोनों ने क्रम से माताओं को प्रणाम किया । पुत्रों को देखकर उनके भर्त शोकजन्य गरम आँसू पुत्रदर्शनजन्य प्रानन्दाश्रुत्रों में बदल गये । उन्होंने पुत्रों के शरीर में राक्षसों के शस्त्रों द्वारा हुए घावों को छूते हुए सोचा कि वीरमाता होना बड़ा कष्टकर है । सीता ने भी उनको प्रणाम किया । " हे वत्से ! उठो, तुम्हारे ही शुद्ध चरित्र के कारण तुम्हारे पति ने इतनी बड़ी विपत्ति को पार किया", यह कहकर माताओं ने उसे अपने चरणों पर से उठाया ।
राज्याभिषेक
इसके बाद रामजी का अभिषेक हुआ जिसमें राक्षस और वानरों ने नदियों, समुद्रों और पवित्र सरोवरों का जल एकत्र किया था । जो राम तपस्वी - वेश में भी सुन्दर लगते थे राजवेश में तो उनका कहना ही क्या था ? तब राम ने राक्षसों व वानरों-सहित अयोध्या में प्रवेश किया। नगर सजा हुआ था, विविध बाजे बज रहे थे, लोग फूलों और फलों की वर्षा कर रहे थे, लक्ष्मण और शत्रुघ्न चँवर डुला रहे थे, भरत ने छत्र पकड़ा था, धूप का धुआँ सम्पूर्ण नगर की खिड़कियों से वेणी की तरह निकल रहा था । सासों द्वारा सजाई हुई, पालकी पर बैठी सीता को स्त्रियाँ खिड़कियों से हाथ जोड़ रही थीं । अनसूया के दिये अंगराग से सीता ऐसी चमक रही थी जैसे अपनी अग्निपरीक्षा का दृश्य प्रयोध्यावासियों को भी दिखा रही हों । सब लोगों को सुविधाजनक महलों में विश्राम कराकर राम पिता के उस भवन में गये जहाँ वे केवल चित्ररूप में शेष थे । वहाँ उन्होंने कैकेयी को प्रणाम किया । सुग्रीव आदि का ऐसा सत्कार हुआ जिसकी वे कल्पना भी नहीं कर सकते थे । अभिनन्दन के लिए आये हुए देवर्षियों से रावण का चरित्र सुनकर राम को उसे मारने के गर्व का अनुभव होता था । देवर्षियों को विदा कर राम ने सुग्रीव, विभीषण आदि सभीको विदा किया । पुष्पक विमान को भी कुबेर के पास वापस भेज दिया ।