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पञ्चदशसर्ग का कथासार
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होओगे”। चारों ओर उस अपचारी को खोजते हुए राम ने किसी शम्बूक नाम के शूद्र को स्वर्ग प्राप्ति के लिए घोर तप करते देखा । वे समझ गये कि इसकी अनधिकार चेष्टा से ही यह अनर्थ हुआ है । अतः उन्होंने बिना किसी संकोच के उसका सिर काट डाला । राम के हाथ से मृत्यु पाकर शूद्र शम्बूक सद्गति को प्राप्त हो गया और वे अयोध्या को लौटे । मार्ग में अगस्त्य ने राम का सत्कार किया और समुद्र से प्राप्त दिव्य प्रभूषण उन्हें दिया जिसे सीता- वियोग से दुःखी राम ने धारण तो नहीं किया पर मुनि का प्रसाद समझकर ग्रहण कर लिया। उनके अयोध्या पहुँचने से पूर्व ही ब्राह्मण का मरा हुआ बालक जीवित हो गया और वह ब्राह्मण, जो राम की निन्दा कर रहा था, पुत्र को रामकृपा से जीवित देखकर उनकी स्तुति करने लगा ।
राम ने अश्वमेध यज्ञ करने की सोची । घोड़ा छोड़ा गया । चारों ओर से राक्षसों,वानरों और राजाओं ने उपहारों की ऐसी वर्षा की जैसे बादल धान पर पानी बरसाते हैं। सभी दिशाओं से तेजस्वी ऋषिगण इकट्ठे हुए । अर्धाङ्गिनी के रूप में सुवर्ण की सीता बनाई गई। यज्ञ में बाधा पहुँचानेवाले राक्षस भी इस यज्ञ में रक्षक बने थे । उसी समय वाल्मीकि द्वारा प्रेरित सीतापुत्र लव - कुश जहाँ-तहाँ रामायण का गान करने लगे। राम का चरित्र, वाल्मीकि की रचना, किन्नरों- जैसा मधुर स्वर और गानेवाले बालकों का दिव्य रूप, इस सबसे श्रोता मोहित होने लगे । उनकी ख्याति फैलने लगी और सभा में उन्हें बुलाकर भाइयों सहित राम ने भी उनका गाना सुना । उन बालकों के रूप की राम से समानता देखकर जनता स्तब्ध रह गई । उनकी कुशलता से भी अधिक आश्चर्य लोगों को तब हुआ जब प्रसन्नतापूर्वक दिया हुआ राम का पारितोषिक निःस्पृह बालकों ने लौटा दिया। राम ने पूछा यह रचना किसकी है ? और तुम्हें यह गाना किसने सिखाया ? तो उन्होंने वाल्मीकि का नाम बताया । राम महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में गये और अपना सारा राज्य उन्हें अर्पण कर दिया । प्रसन्न हुए ऋषि ने राम को बताया कि ये दोनों तुम्हारे पुत्र हैं और तुम पुत्रों सहित सीता को ग्रहण करो ।
राम ने कहा- हे महर्षि ! यद्यपि सीता की अग्निपरीक्षा हो चुकी है, मैं जानता हूँ वह निर्दोष है, परन्तु राक्षस के घर में रहने के कारण जनता उसकी सच्चरित्रता पर विश्वास नहीं करती। यदि वह जनता को विश्वास दिला सके तो मैं उसे स्वीकार कर लूंगा । राम के इस कथन पर महर्षि ने सीता को बुलाया । गेरुवे वस्त्र धारण की हुई और दृष्टि झुकाकर सीता सबके समक्ष राम के सम्मुख उपस्थित हुई । मुनि