Book Title: Raghuvansh Mahakavya
Author(s): Kalidas Makavi, Mallinath, Dharadatta Acharya, Janardan Pandey
Publisher: Motilal Banarsidass
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रघुवंशमहाकाव्य और शत्रुघ्न ने वैष्णव बाण उसकी छाती में मारा जिससे मरकर पृथ्वी को कंपाता हुअा वह गिर पड़ा। उस मरे हुए राक्षस पर गिद्ध-कौवे झपट पड़े और शत्रुघ्न पर फूलों की वर्षा होने लगी।
लवणासुर को मारकर शत्रुघ्न ने इन्द्रजित् को मारनेवाले लक्ष्मण का सहोदर भाई होना सिद्ध कर दिया। कृतार्थ हुए मुनियों ने उसकी प्रशंसा की। उसने यमुना के किनारे मधुरा नगरी का निर्माण कराया। सुखकारी राज्य के आकर्षण से खिचे हए नागरिकों के ऐश्वर्य से वह नगरी स्वर्ग-जैसी प्रतीत होती थी। महल की अट्टालिका पर चढ़े हुए शत्रुघ्न को चक्रवातों से युक्त यमुना पृथ्वी की वेणी-जैसी लगती थी।
राजा दशरथ और जनक दोनों के मित्र महर्षि वाल्मीकि ने मैथिली सीता के यमल पुत्रों का विधिवत् जातकर्मादि संस्कार किया। सीता की गर्भवेदना को दूर करने के लिए कुश और लव (चमरी गाय की पूंछ से बना चंवर) का प्रयोग हुआ था, अतः ऋषि ने उन दोनों का नाम कुश और लव रखा। जब वे कुछ बड़े हो गये तो उन्हें वेद-वेदाङ्ग का अध्ययन कराकर अपने बनाये हुए आदिकाव्य (रामायण) को गाना सिखाया। वे दोनों पुत्र राम के मधुर चरित्र को गाकर माता (सीता) के राम-वियोग की व्यथा को कुछ कम करते थे। राम के शेष तीनों भाइयों के भी दो-दो पुत्र हुए। शत्रुघ्न ने अपने पुत्र शत्रुघाती को मधुरा का और सुबाहु को विदिशा का शासक नियुक्त किया और अपने अग्रजों से मिलने अयोध्या चले आये। लौटते समय तपस्या में विघ्न न हो इसलिए वे वाल्मीकि के आश्रम में नहीं गये । अयोध्या आने पर उन्होंने अपनी विजय का सारा वृत्तान्त राम को सुनाया, किन्तु सीता के पुत्रजन्म की बात नहीं कही, क्योंकि वाल्मीकि ने मना किया था और कहा था कि उचित समय पर मैं स्वयं राम को बताऊँगा।
इसके बाद एक दिन नगर में किसी ब्राह्मण के बालक की अकाल मृत्यु हो गई। वह पुत्र के शव को राम के द्वार पर रखकर विलाप करने लगा कि हे पृथ्वी! इक्ष्वाकुवंशियों के राज्य में कभी किसी की अकाल मृत्यु नहीं हुई। दशरथ के हाथ से राम के हाथ में आने पर तुम इस दीन दशा को प्राप्त हो गई कि अब बालकों की भी मृत्यु हो रही है। उसके रुदन से चिन्तित हुए राम ने ब्राह्मण से कुछ देर रुकने को कहकर पुष्पक विमान का स्मरण किया और शस्त्र लेकर उसमें आरूढ़ हो गये जैसे मृत्यु (यमराज) को जीतने जा रहे हों। इसी समय आकाशवाणी हुई कि "हे राजन् ! तुम्हारे राज्य में कोई अपचार (भ्रष्ट आचरण)कर रहा है, उसे दूर करो, तब कृतार्थ