Book Title: Raghuvansh Mahakavya
Author(s): Kalidas Makavi, Mallinath, Dharadatta Acharya, Janardan Pandey
Publisher: Motilal Banarsidass
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रघुवंशमहाकाव्य ऐरावत के मदगन्ध से युक्त और स्वर्गङ्गा की लहरों से शीतल वायु तुम्हारे मुख के पसीने को दूर कर रहा है । तुम्हारे खिड़की से बाहर किए हुए हाथ से छुअा गया बादल जैसे बिजलीरूप दूसरा कङ्कण पहिन रहा है। ___ मैंने राक्षसों को मार डाला। अतः ये तपस्वीजन जनस्थान के चिरकाल से छोड़े हुए आश्रमों को पुनः प्राबाद कर रहे हैं। यह वही स्थान है जहाँ तुम्हें खोजते हुए मैंने भूमि पर गिरा हुआ एक नूपुर पाया था जो कि तुम्हारे चरण का वियोग होने के दुःख से मौन पड़ा था। रावण तुम्हें जिस मार्ग से ले गया था उस ओर ये लताएँ शाखाओं को हिला-हिलाकर मुझे उस दिशा का निर्देश करती थीं। हरिणियाँ घास छोड़कर बार-बार दक्षिण की ओर देखती थीं। यह माल्यवान् का वह ऊँचा शिखर है जहाँ बरसात प्रारम्भ होते ही बादल ने पहला पानी और मैंने तुम्हारे वियोग में आँसू एकसाथ छोड़े थे। यहां पोखरों की सोंधी गन्ध, अधखिले कदम्ब के पुष्प तथा मोरों की ध्वनि तुम्हारे बिना मुझे असह्य होती थी। तुम्हारे आलिंगन का स्मरण करता हुआ मैं बादलों की गर्जना बड़ी कठिनता से सहता था। भाप के बीच लाललाल कन्दली के फूलों को देखकर विवाह के समय धुएँ से लाल-लाल तुम्हारी आँखों का स्मरण हो आता था। दूर से उतरने पर थके हुए की भाँति मेरी आँखें इस पम्पा सरोवर के जलों को पी जाना चाहती हैं। यहीं चक्रवाकों के जोड़ों को मैं बड़े चाव से देखा करता था । स्तनों-जैसे गुच्छों के भार से झुकी इस लता को सीता समझकर मैं आलिङ्गन करना ही चाहता था कि लक्ष्मण ने मुझे रोक दिया। ये विमान के बीच लटकाई हुई छोटी घंटियों के शब्द को सुनकर गोदावरी के सारसों की पंक्तियाँ आकाश को उड़ती हुई तुम्हारा स्वागत-सा कर रही हैं । तुमने दुर्बल होते हुए भी घड़ों से सींच-सींच कर जहाँ के छोटे-छोटे ग्राम के पौधों को बड़ा किया वह पंचवटी मेरे मन को हर रही है। इस गोदावरी के किनारे शिकार से लौटा हुअा मैं बेंत की झाड़ियों में तुम्हारी गोद में सिर रखकर लेट जाता था। तब तुम्हारा सो गए क्या?' कहना याद आता है। यह उन्हीं अगस्त्य ऋषि का भूलोकस्थ आश्रम ा गया जिनके भौंह टेढ़ी करते ही नहुष इन्द्रपद से भ्रष्ट हो गया था और जो (अगस्त्यनक्षत्र) बरसात के गन्दे जल को स्वच्छ कर देते हैं। इस आश्रम से निकले हुए होम के धुएँ को सूघकर मेरा चित्त हलका हो रहा है। यह शातकणि मुनि का पञ्चाप्सरस् नामक क्रीड़ासरोवर, वनों से घिरा, मेघ से घिरे चन्द्रमण्डल-सा दीख रहा है। केवल दूब चरते मुनि को इन्द्र ने अप्सराओं के जाल में फंसा दिया। जल के भीतर बने महल से संगीत में बजते