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तथा चौथी नारी साड़ी की जीवी को बिना बाँधे योंही हाथ से पकड़े हुए, खिड़की में दृष्टि लगाये खड़ी रही। एवं पांचवीं मोतियों की माला गूथ रही थी कि जल्दी में छोड़कर ऐसी दौड़ पड़ी कि खिड़की तक सब मोती तो बिखर गये, केवल धागा ही अंगूठे में लिपटा रह गया। इन सुन्दरियों के मुखों से भरे झरोखे ऐसे लग रहे थे कि मानों चंचल नेत्ररूपी भौरों से व्याप्त कमलों से भरे हैं । ___ इस प्रकार सब भूलकर सर्वात्मना अज को देखकर वे नगर वधुयें अपने २ मन की प्रसन्नता व्यक्त करने लगों, स्वयंवर करना अच्छा हुमा, अन्यथा इन्दुमती अपने समान मनोहर पति को कैसे प्राप्त करती, और यदि ब्रह्मा इन दोनों को न मिलाता तो ब्रह्मा का इन दोनों का सौन्दर्य विधान व्यर्थ हो जाता।
ये दोनों पूर्वजन्म में अवश्य ही रति और कामदेव रहे होंगे, अन्यथा इस बाला ने हजारों राजारों में अपने तुल्य इसको कैसे प्राप्त कर लिया, मन तो जन्मान्तर की संगति जानने वाला होता है। इस प्रकार की कथाएं नगर की वधुओं के मुख से सुनता हुआ कुमार अज, मांगलिक संविधाओं से सजाये गये संबन्धी के घर में पहुंच गये । और कामरूप के राजा का हाथ पकड़कर हथिनी से उतरकर भीतर चौक में चले गये ।
तब भोज राजा ने मधुपर्क तथा वस्त्र युगल दिया, और उस रेशमी वस्त्र को पहने हुए अज को अन्तःपुर के रक्षकगण वधू के पास ले गये । वहाँ पर हवन करके अग्नि को साक्षी कर पुरोहित ने वरवधू को मिला दिया। इस सर्ग में महाकवि ने ८ ९ श्लोकों से विवाह एवं तत्संबन्धी कार्यों का बड़ा ही सुन्दर स्वाभाविक तथा सामाजिक नियमोपनियमों का वर्णन किया है। इस प्रकार से विवाह के उपरान्त भोज ने दूसरे राजाओं का भी अलग से सत्कार कर सबको विदा कर दिया।
ये राजा लोग अज से इन्दुमती को छीन लेने की इच्छा रो आगे बढ़कर मार्ग रोक कर बैठ जाते हैं । इधर बहन को अपने सामर्थ्यानुसार अनेक वस्तु देकर भोज ने विदा किया, और तीन रात तक इनके साथ मार्ग में रहकर फिर वे अपनी राजधानी में लौट जाते हैं, और उधर मार्ग रोक कर बैठे पराजित राजाओं ने मिलकर इन्दुमती को ले जाते हुए अज को रोका। यहाँ पर घमासान युद्ध