Book Title: Raghuvansh Mahakavya
Author(s): Kalidas Makavi, Mallinath, Dharadatta Acharya, Janardan Pandey
Publisher: Motilal Banarsidass
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होता है । जिसका वर्णन महाकवि ने पचीस श्लोकों में बड़े हो रोचक ढंग से किया है । अन्त में अज प्रियंवद नाम के गन्धर्व से प्राप्त किये गन्धर्व देवता वाले निद्राकारक अस्त्र को छोड़ता है, जिसके प्रभाव से सबके सब राजा एवं सैनिक जैसे के तसे चेष्टाशून्य हो जाते हैं। और अज को बिजय लक्ष्मी प्राप्त होती है। अज विजय शंख बजाते हैं। उस शंखध्वनि को सुनकर उनके सैनिक लौट आते हैं, और अज भी इन्दुमती के पास आकर कहते हैं कि हे इन्दुमती, देखो इन राजाओं को, ये मुझसे युद्ध करके तुमको छीनना चाहते हैं। इस समय छोटे २ बच्चे भी इनके शस्त्र छीन सकते हैं इसी वीरता पर ये तुमको छीनने आये थे देखो । पतिशौर्य से इन्दुमती भी बड़ी प्रसन्न हुई किन्तु लजावश स्वयं न कहकर अपनी दासी के द्वारा प्रिय का अभिनन्दन किया। इस प्रकार सबको पराजित कर मूर्तिमती युद्ध की विजयलक्ष्मी के समान इन्दुमती को लेकर अज स्वराजधानी में लौट आये, यह सब वृत्तान्त रघु ने पहले ही सुन लिया था। अतः विजयी और प्रशंसनीय भार्या से युक्त अज को राज्यभार देकर स्वयं शान्तिमार्ग में उत्सुक हो गये।
अष्टम सर्ग इसके पश्चात् वैवाहिक मंगल सूत्र को धारण किये हुए ही अज के हाथों में महाराज रघु ने वसुधा भी सौंप दी।
जिस राज्य को प्राप्त करने के लिये राजामों के लड़के बड़े २ अपराध भी कर डालते हैं। उसी राज्य को अज ने पिता को प्राज्ञा से स्वीकार किया न कि भोगतृष्णा से।
अथर्व वेद के ज्ञाता गुरुवसिष्ठ जी से अभिषेक संस्कार होने पर अज शत्रुओं के दुर्धर्ष हो गये। और प्रजाने तो पुनः जवान होकर लौट आये रघु ही समझ लिया, क्योंकि प्रज ने अपने पिता की राज्यलक्ष्मी ही नहीं प्राप्त की थी किन्तु रघु के सभी गुर्गों को भी प्राप्त कर लिया था।