Book Title: Raghuvansh Mahakavya
Author(s): Kalidas Makavi, Mallinath, Dharadatta Acharya, Janardan Pandey
Publisher: Motilal Banarsidass
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रघुवंशमहाकाव्य राम ने बाली को मारकर उसके स्थान पर सुग्रीव को ऐसे बैठा दिया जैसे धातु के स्थान में आदेश आ जाता है। सुग्रीव के भेजे हुए वानर-दूत पृथ्वी में चारों ओर सीता की खोज करने लगे। सम्पाति नामक गृध्र के यह बताने पर कि रावण सीता को समुद्र पार लंका में ले गया है, हनुमान् ने समुद्र को ऐसे लांघ दिया जैसे योगी संसार को पार कर जाता है। लंका पहुंचने पर उन्होंने सीता की खोज की तो विषलताओं से घिरी संजीवनी औषधि की तरह राक्षसियों से घिरी हुई उन्हें अशोकवाटिका में देखा। सीता के सामने प्रकट होकर हनुमान ने राम की दी हुई अंगूठी पहचान के रूप में सीता को दी जिसे देखकर सीता को अपार हर्ष हुआ। प्रियतम (राम) के सन्देशों से सीता को सान्त्वना देकर अक्षयकुमार (रावणपुत्र) का वध करके, कुछ क्षणों के लिए शत्रु (मेघनाद) के बन्धन को सहते हुए हनुमान् ने रावण की लंका को जला डाला। फिर सीता की दी हुई चूड़ामणि को लेकर राम के पास आ पहुंचे। सीता का समाचार पाकर और उनके भेजे परिचय-चिह्न को देखकर राम को ऐसा लगा जैसे सीता का हृदय ही उनके पास आ गया हो। प्रियामिलन के लिए अत्यन्त उत्सुक राम को समुद्र एक साधारण खाई-जैसा लगने लगा और सुग्रीव की विशाल वानरसेना लेकर वे समुद्र के किनारे आ गये। वहा उन्हें सुमति की प्रेरणा से आया हुआ रावण का भाई विभीषण ऐसे मिला मानो लङ्का ने अपनी रक्षा के लिए उसे राम की शरण में भेजा हो। राम ने रावण को मारकर लंका का राज्य उसे देने का आश्वासन दिया।
वानर-सेना ने उस क्षार-समुद्र में विशाल पुल बांध दिया जो ऐसा लगता था जैसे भगवान् के शयन के लिए शेषनाग समुद्र के ऊपर आ गया हो। उस पुल से समुद्र पारकर वह विशाल सेना लङ्का में पहुंची और वानरों एवं राक्षसों में भीषण युद्ध छिड़ गया। दोनों पक्षों के अपने-अपने स्वामी (राम और रावण) की जय-जयकार से दिशाएं गूंजने लगीं। राक्षसों द्वारा फेंके गये परिघ अस्रों को वानरों ने पेड़ों द्वारा, मुद्गरों को पत्थरों की चट्टानों द्वारा चूर कर डाला और उनके अन्य अस्त्रधारियों को नाखूनों से ही नोच डाला। जब रावण ने अपनी हार होते देखी तो माया से राम का कटा हुआ सिर सीता के सामने रखकर उसे वश में करना चाहा। पहले तो सीता को राम की मृत्यु से अपना जीवन व्यर्थ प्रतीत हुआ पर जब त्रिजटा ने उसे वास्तविकता बताई तो वह राम की विजय की प्रतीक्षा करने लगी।
मेघनाद ने नागपाश से राम-लक्ष्मण को बांधना चाहा, पर राम ने गरुड़ास्त्र