Book Title: Raghuvansh Mahakavya
Author(s): Kalidas Makavi, Mallinath, Dharadatta Acharya, Janardan Pandey
Publisher: Motilal Banarsidass
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अत्यन्त सुन्दर होते हुए भी यह राजा इन्दुमती के मनपसन्द न हुमा । तब सुनन्दा के मुख से कवि मथुरा के राजा सुषेण का वर्णन करते हैं कि इसकी कीर्ति दूसरे लोकों में भी गायी जाती है यह नीपवंश में उत्पन्न हुमा है और इसके पास आकर विरोधी प्राणियों ने भी परस्पर का स्वाभाविक बेर त्याग दिया है, और इसके अन्तःपुर की स्त्रियों के स्तनों के चन्दन से स्नान करते समय मथुरा में भी जमुना गंगाजी की तरंगों से मिली हुई सी जान पड़ती है। अतः कुबेर के बगीचे के समान सुन्दर वृन्दावन में विहार करने की इच्छा हो, तो इस युवक राजा से विवाह कर वर्षा ऋतु में सुन्दर गोवर्धन की कन्दरामों में शिलाजीत की भीनी सुगन्ध वालो फुहारों से शीतल चट्टानों पर बैठकर मोरों का नाच देखो।
इसको छोड़कर कुमारी आगे बढ़ी और सुनन्दा पुनः कलिङ्ग देश के राजा हेमांगद का वर्णन करती है। इसके बाद नागपुर के राजा का वर्णन सुनन्दा करती है कि यह पाण्डु प्रान्त का राजा देवताओं के तुल्य है महर्षि अगस्त्य जी इनसे अश्वमेध के अन्त में अवभृथ स्नान की निर्विघ्न सम्पन्नता पूछते हैं। और इसके बल से भयभीत होकर रावरण भी इससे मित्रता रखता है। यह नीलकमल के समान श्याम शरीर है और तुम गोरोचना के समान गौरी हो अतः मेघ और विजली के समान तुम्हारा संबन्ध हो जाये । यह भी इन्दुमती को न जंचा। जिस प्रकार चलती दीप शिखा ( बत्ती ) रात में जिस जिस मकान को छोड़कर आगे बढ़ जाती है तो वह स्थान अन्धकार से विवर्ण हो जाता है उसी प्रकार इन्दुमती भी जिस २ राजा को छोड़कर आगे बढ़ी वह वह राजा भो उदास हो गया । महाकवि की यह उक्ति अतीव प्रसिद्ध, चमत्कारपूर्ण स्वाभाविक और अनूठी है इससे विद्वान् लोग कवि को दोपशिखा कवि भी कहने लगे हैं ।
इन सबके पश्चात् रघुपुत्र अज का वर्णन सर्वाधिक मनोरम एवं सर्वातिशायी है। इन्दुमती जब अज के सामने पहुंचती है, तो अज का दक्षिण बाहु फरकता है और अज को विश्वास हो जाता है कि मेरा ही वरण करेगी। इधर इन्दुमतो भी सर्वांग सुन्दर सुललित दोष रहित अज को प्राप्तकर अन्यत्र जाने से उसी प्रकार रुक गई, जिस प्रकार वसन्त में बौर आये प्राम के वृक्ष को छोड़कर