Book Title: Raghuvansh Mahakavya
Author(s): Kalidas Makavi, Mallinath, Dharadatta Acharya, Janardan Pandey
Publisher: Motilal Banarsidass
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कथासार
षष्ठ सर्ग कविकुल भूषण, सरस्वती देवी के वरद पुत्र, महाकवि कालिदास ने षष्ठ सर्ग में चमत्कारपूर्ण अतीव रमणीयता तथा स्वाभाविकरूप से इन्दुमती के स्वयंवर का वर्णन इस प्रकार किया है ।
रघुपुत्र अज ने स्वयंवर स्थान में जाकर राजा महाराजाओं के बैठने योग्य सजाये गये सिंहासनों पर बैठे अतएव देवताओं के समान प्रतीत हो रहे राजाओं को देखा। वे राजा भी कामदेव के समान सुन्दर अज को देखकर इन्दुमती के विषय में निराश हो गये। अज महाराज भोज से दिखाये गये विविध रत्न जटित ऊचे सिंहासन पर बैठ गये। वे उस रंगविरंगे सिंहासन पर मोर की पीठ पर बैठे कार्तिकेय के समान शोभित हुए।
दर्शकजनों की आँखें सम्पूर्ण राजमण्डल को छोड़कर अज ऊपर ही प्रा टिकी । अज के वहाँ बैठते ही वन्दीजन सूर्यवंशी तथा चन्द्रवंशी राजाओं का वर्णन करने लगे तथा सुगन्धित अगर की धूपबत्ती का धुआँ आकाश में फैल गया और मांगलिक बाजे बजने लगे। इसी बीच मञ्चों के बीच बने राजमार्ग से इन्दुमती पालकी में बैठकर सुनन्दा नाम को अपनी सखी के साथ स्वयंवर. स्थल पर आ पहुंची।
विधाता की अद्वितीय सीन्दर्य सृष्टि उस कन्या के रूप को देखकर सभी राजा अपने मन के भावों को इन्दुमती के प्रति प्रकट करने के लिये अनेक प्रकार की शृंगार चेष्टायें करने लगे। नाटकीय ढंग से कमल को घुमाना तिरछी माला को ठीक करना, पर के पंजे से पावदान को कुरेदना, जरा एक तरफ झुककर बगल में बैठे मित्र राजा से बातें करना, अपने नखों से केवड़े के पत्ते को फाड़ना, अपने करकमल से पाशे उछालना, तथा ठीक पहने हुए भी मुकुट को ठीक करने के बहाने उसमें हाथ फेरना आदि, महाकवि ने सात पद्यों द्वारा इन शृंगार चेष्टाओं का बहुत ही सुन्दर एवं चमत्कारपूर्ण वर्णन किया है। इनका अभिप्राय भी राजाओं ने अपने मनोनुकूल कुछ और लगाया, और इन्दुमती