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रघुवंशमहाकाव्य स्वागत के लिये लाये हुए मिट्टी के पात्रों से ही दक्षिणा-प्राप्ति के विषय में निराश हुआ कौत्स राजा रघु की उदार वाणी सुनकर बोला--
हे राजन् हम लोग सब तरह से कुशल हैं। सूर्य के रहते जैसे अन्धकार की कल्पना ही नहीं की जा सकती ऐसे ही तुम जैसे प्रजावत्सल शासक के रहते किसीका कोई अनिष्ट कैसे हो सकता है ? पूजनीय जनों के प्रति भक्ति की भावना रखना आपके बंशजों की परम्परा रही है। आपकी श्रद्धा उनसे भी आगे बढ़ी है। मुझे दुःख है कि मैं समय बीत जाने पर याचना हेतु यहाँ आया हूं। वनवासियों द्वारा दाने निकाल लेने पर जैसे अन्न का ढूंठ रह जाता है ऐसे ही सत्पात्रों को सर्वस्व देकर आप भी अकिंचन रह गये हैं। सम्पूर्ण पृथ्वी के एकछत्र राजा होकर भी यज्ञ करके आपका अकिंचन होना उचित ही है क्योंकि देवताओं द्वारा क्रमसे सारा अमृत पी लेने के बाद ही तो चन्द्रमा की कलाएँ बढ़ने लगती हैं।
हे राजन् ! मुझे गुरुदक्षिणा निमित्त धन अर्जित करने के अतिरिक्त और कोई काम नहीं है। अतः मैं इसके लिये अन्यत्र प्रयत्न करूंगा। आपका कल्याण हो। बरस कर रिक्त हुए बादल से चातक भी पानी नहीं मांगता।
इतना कहकर चलने को उद्यत हुए कौत्स से राजा ने कहा--हे विद्वन् ! आपने गुरुदक्षिणा में क्या देना है और कितना देना है ?
विश्वजित्-जैसे विशिष्ट यज्ञ करने पर भी अभिमान जिसे छू तक नहीं गया है ऐसे वर्णाश्रमों के रक्षक उस राजा के वचन सुनकर ब्रह्मचारी रुक गया और बोलाविद्याध्ययन समाप्त कर मैंने गुरु से दक्षिणा देने की आज्ञा चाही, किन्तु उन्होंने चिरकाल तक की मेरी भक्ति को ही पर्याप्त समझा। किन्तु मुझे सन्तोष न हुआ, मैं पुनः गुरुदक्षिणा का आग्रह करने लगा। इसपर रुष्ट होकर गुरुजी ने मेरी धनहीनता का विचार न करते हुए कह दिया--मैंने तुम्हें १४ विद्याएं पढ़ाई हैं। अतः १४ करोड़ स्वर्णमुद्रा दे दो। हे राजन् ! तुम्हारे पूजा के पात्रों से ही मैं समझ गया हूं कि तुम केवल नाम के ही प्रभु रह गये हो । मेरी मांग बहुत बड़ी है, अतः मैं तुमसे अाग्रह नहीं कर सकता।
विद्वान् ब्राह्मण के वचन सुनकर तेजस्वी सम्राट् रघु ने फिर कहा-हे मुने ! एक शास्त्रज्ञ विद्वान् गुरुदक्षिणा के लिये द्रव्य की याचना करने राजा रघु के पास आया। वहां उसकी कामना पूरी नहीं हो सकी और वह दूसरे दाता के पास चला गया। यह अपयश मेरे लिये नया होगा जिसे मैं सहन न कर सकूँगा। अतः आप कृपाकर दो तीन दिन मेरी अतिथिशाला में रुकें। मैं आपके लिये द्रव्य का प्रयत्न करता