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पंचमसर्ग का कथासार तुम्हें यह संमोहन नाम का गन्धर्वास्त्र दे रहा हूं जिसके प्रयोग से शत्रु मोहित हो जाते हैं, हिंसा भी नहीं होती और विजय भी हाथ आ जाती है। अतः बिना किसी प्रकार की लज्जा के इसके प्रयोग और संहार की मंत्र-विधि मुझसे सीख लो। तब अज ने नर्मदा का जल हाथ में लेकर उत्तर की ओर मुख करके सब अस्त्रविद्याओं को जानते हुए भी उस संमोहन अस्त्र की प्रक्रिया को ग्रहण किया। इस प्रकार उन दोनों में मित्रता हो गई और दोनों अपने अभीष्ट स्थलों को-एक चैत्ररथ को दूसरा विदर्भ को-चल दिये। ___ जब अज विदर्भ की राजधानी के पास पहुंचा तो जैसे समुद्र अपनी तरंगरूप भुजाओं से चन्द्रमा का स्वागत करता है ऐसे ही राजा भोज ने प्रसन्न हृदय से उसका स्वागत किया। राजा भोज के व्यवहार से स्वयंवर में आये लोग अज को घर का स्वामी और भोज को अतिथि समझ रहे थे। विदर्भ-नरेश के अधिकारियों ने अज को सुन्दर नये सजाये हुए महल में ठहराया जिसके पूर्व द्वार पर जलकलश रखे गये थे। उस दिव्य भवन में वह ऐसा लग रहा था जैसे कामदेव युवावस्था में वास कर रहा हो। जिसके स्वयंवर में तमाम राजा एकत्रित हुए हैं ऐसी कन्यारत्न को प्राप्त करने की लिप्सा से अज को रात्रि में बड़ी देर में नींद आ पाई और प्रातः काल होते ही वैतालिकों ने उसे जगाने के लिये स्तुतियाँ गानी शुरू कर दीं--
हे बुद्धिमानों में श्रेष्ठ ! उठिये, रात बीत चुकी। विधाता ने इस पृथ्वी के भार को दो भागों में बांटा है जिसके एक भाग को वहन करने के लिये आपके पिता जाग गये हैं; दूसरा आपको संभालना है। रात में जब आप सो जाते हैं तब आपके मुख की शोभा को धारण करनेवाला चन्द्रमा अब फीका पड़ने लगा है। भौंरे कमलों पर मंडराने लगे हैं क्योंकि शीघ्र ही कमल खिल जायेंगे। अतः आप भी प्रांख खोलें तो आंखों से कमलों का और तारिकाओं से भौंरों का सादृश्य स्पष्ट हो जायगा। प्रातःकालीन यह सुन्दर वायु खिले हुए कमलों की सुगन्ध लेकर अब तुम्हारे मुख से निकली श्वासों की सुगन्ध लेना चाहता है। जब तक सूर्य उदय नहीं हो पाये उससे पहले ही अरुण ने अन्धकार को नष्ट कर दिया है। हे वीर! तुम-जैसे श्रेष्ठ धनुर्धर के रहते तुम्हारे पिता शत्रुओं का उन्मूलन स्वयं करेंगे क्या ? गजशालाओं में हाथियों की सांकलें खनकने लगी हैं, घोड़ों के नथुनों की श्वास से सैन्धव शिलाएँ पसीजने लगी हैं, अर्थात् उनकी भी नींद खुल गई है। हे राजकुमार! सायंकाल तैयार किये फूलों के हार बिखर गये हैं, दीपक की लौ मन्द पड़ने लगी है और तुम्हारा