Book Title: Raghuvansh Mahakavya
Author(s): Kalidas Makavi, Mallinath, Dharadatta Acharya, Janardan Pandey
Publisher: Motilal Banarsidass
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पंचमसर्ग का कथासार हूं। सत्यवक्ता रघु के कथन पर विश्वास करके कौत्स रुक गया और रघु ने सोचा पृथ्वी का सारा सर्वस्व लेकर तो मैंने दान कर दिया; अब इतनी बड़ी धनराशि के लिये कुबेर पर चढ़ाई की जाय। क्योंकि जैसे वायु बादलों को जहां चाहे वहाँ ले जाता है वैसे ही वसिष्ठ जी के मंत्रों के अभिषेक के प्रभाव से राजा रघु का रथ भी जल, स्थल और आकाश में बेरोकटोक जा सकता था।
उस रात शस्त्रों से सुसज्जित होकर रघु रथ पर ही सोया जैसे प्रातः किसी साधारण सामन्त को जीतने जाना हो। जब वह सोकर उठा तो कोश-रक्षकों ने सूचना दी कि रात में आकाश से हुई सुवर्ण की वर्षा से खजाना भर गया है। राजा ने वह सारी सुवर्ण-राशि कौत्स को दे दी। परन्तु कौत्स अपनी गुरुदक्षिणा से कुछ भी अधिक लेने को तैयार न था । अयोध्यावासी उन दोनों के चरित्र को श्रद्धा से देख रहे थे। एक याचक की चाह से कई गुना अधिक देनेवाला दाता और दूसरा अपनी आवश्यकता से रत्तीभर भी अधिक न लेनेवाला याचक ।
इसके बाद ऊंटों और खच्चरों पर सुवर्णराशि लादकर चलते हुए कौत्स ने राजा को आशीर्वाद दिया--हे राजन् यह पृथ्वी तुम्हारी प्रत्येक इच्छा को पूरी करती है। इसमें क्या आश्चर्य है ? तुम तो अपने प्रभाव से स्वर्ग को भी दुह लेते हो। ऐसे सामर्थ्यशाली व्यक्ति को कुछ भी आशीर्वाद देना केवल पुनरुक्ति ही होगी। अतःजैसे
आपके पिता ने आप-जैसा प्रशंसनीय पुत्र प्राप्त किया ऐसे ही आप भी अपने-जैसा गुणवान् पुत्ररत्न प्राप्त करें। यह पाशीर्वाद देकर ब्राह्मण अपने गुरु के पास चल दिया और जैसे संसार सूर्य से प्रकाश पाता है ऐसे ही राजा को पुत्र की प्राप्ति हुई।
ब्राह्म मुहूर्त में रानी ने कार्तिकेय-जैसे तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। अतः ब्रह्म के नाम पर उसका 'अज' नाम रखा गया। जैसे एक दीपक से वैसा ही दूसरा दीपक जलकर प्रकाश करता है उसी प्रकार रूप, गुण, तेजस्विता, पराक्रम और डीलडौल में भी वह ठीक रघु-जैसा ही था। गुरुओं से विधिवत् विद्या प्राप्त कर वह जवान हो गया तो राज्यलक्ष्मी उसे ऐसे चाहने लगी जैसे कोई गम्भीर कन्या पिता की आज्ञा की प्रतीक्षा कर रही हो।
उसी समय विदर्भदेश के राजा भोज ने अपनी बहिन इन्दुमती के स्वयंवर में अज को बुलाने के लिये रघु के पास दूत भेजा। रघु ने भी विदर्भनरेश को अपना कृतसम्बन्धी समझकर और पुत्र को विवाह योग्य जानकर सेना सहित अज को विदर्भ की राजधानी के लिये भेज दिया।