________________ प्रथमः सर्गः। नदीके उच्चतम प्रकारको ( या-बारूपिणी नदीरूप दर्गको पारकर नसके पबमें प्रति हो गयी ) // 48 // अपहृवानस्य जनाय यन्निजामधीरतामस्य कृतं मनोभुवा। अयोधि तज्जागरदुःखसाक्षिणी निशा च शय्या प शशाङ्ककोमला // 4 // अथास्य जागरावस्थामाह-अपहवानस्पेति / निजामधीरतां चपलावं बनाया. पहवानस्यापळपतः 'श्वाघहुस्थे स्यादिना सम्प्रदानस्वाचतुर्थी। भस्य नलस्य मनोभुवा कामेन यजागरप्रहापारिकं कृतम्सस्सर्व जागरवस्य सारिणी / 'सासाद दृष्टरि संज्ञायामि ति सामाच्छन्दादिमिप्रत्यये डीप / शशान कोमला रम्या निशा बाबोधि / 'दीपजने स्थारिना कसरि ग्लेषिणादेशः / तथा शशाश्वस्कोमला मृदुला शय्या अबोधि, निशापा पपायां मागरणयोस्तरसारिवमिति भावः // 49. कामदेवने अन्य लोगों से अपनी भारताको छिपाते हुए इस मका को 9 किया, इस नाके भागनेको प्रत्यय देखनेवाग रात्रि तथा चन्द्र के समान कोमा शय्या मानती थी। (अथवा चनसे मनोहर राषि एवं चन्द्रबह शुभ होनेसे कोमाखाबानती बी)। नलकी दमयन्ती-विराबन्या पोरताको दूसरे हिसाने वो नहीं पहचाना। रातमर जागते हुए भव्यापर होते रहते थे] // 49 // स्मरोपतप्तोऽपि भृशं न म प्रभुविदर्मराजं तनयामयाषत / त्यजन्त्यसूलशर्म च मानिनो वरं त्यजन्ति न त्वेकमयाचितव्रतम् // 50 // ना किमने न निषन्मनेन, पापताम्भीमभूपतिदमपन्तीम् , नेत्याह-स्मरेत्यादि। भृशं गाढं स्मरोपततः कामपन्सोऽपि प्रभुः समर्थः स मला विधमरा भीमनुपतितनयां दमयन्ती न भयापत नपाधितवान् 'दुहिपाची'त्पादिना याचेर्षिकर्मकता। तयाहि मानिनो मनस्विमोश्युवमनस्काः प्राणान् कर्म च सुख पन्ति एतस्यागोऽपि धरं मनाक दरमिति ममागुरकर्ष इति महोपाप्यायपईमानः / किन्तु, एकमद्वितीयमयाचितवत अपानानियमन्तु न त्यजन्ति, मानिभा प्राणरपागडस्वाद् दु:सह यात्रामा दमित्यर्थः / सामाम्येन विशेषसमर्थनस्पोऽर्थान्तरन्याः // 50 // उस मा तलने वामपसे मतिशव पारित होकर मौ विधमनरेश ( मीम ) से दमथती को नहीं मांगा, क्योंदि मानी लोग प्राणत्याग मळे हो कर देते है, किन्तु एकमात्र भयान स्यमका स्या नहीं करते। [अथवा-- ... "मानी लोग उस तश प्राणोंका स्यामा ने... ... / अथवा--मानो योग प्राणांका त्याग Bखपूर्वक कर देते है, यमाके में जियमका त्याग नहीं कर ! 58 / / मृषाविषदामन यादय कामउजुगोप निःश्वासतानि वियोगजाम् / विले 5 साधिक चन्द्रमागताविभावनाचायललाप पाण्दुनाम् / / 52 / /