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ज्ञानार्णवः
प्रकरण
श्लोकांक ५-१४ १५-१९ २०-२२ २३-३५
विषय चार भावनाएँ-मैत्री, करुणा, मुदिता और उपेक्षा भावनाओंका फल ध्यानके लिए स्थानका महत्त्व निषिद्ध स्थान
पृष्टांक ४३८-४४० ४४०-४४१ ४४२ ४४२-४४५
२६.
१-१४१२१
प्राणायाम
४४७-४८६
१०-१२ १३-२२
२३
ध्यानके लिए योग्य स्थान ध्यानके लिए उचित आसन ध्याताओंकी श्रेष्ठता और योग्यता ध्यानके लिए योग्य दिशा ध्याताके लक्षण आसनजय प्राणायामका स्वरूप, सामर्थ्य और फल
४४७-४४९ ४४९-४५० ४५०-४५२ ४५३ ४५३-४५४ ४५४-४५७ ४५७-४८६
२४-२९ ३०-४० ४१-१४११
२७.
प्रत्याहार प्रत्याहारका स्वरूप प्राणायाम प्रत्याहारसे कनिष्ठ प्रत्याहारका स्वरूप
४८८-४९२ ४८८-४८९ ४८९-४९० ४९१-४९२
६-११ १२-१४
२८.
सवीर्य ध्यान
४९३-५०५
१-३८ १-१६ १७-१८ १९-३३ ३४-३८
ध्यानाभिमुख मुनिके विचार ध्येयका स्वरूप आत्माका स्वरूप ध्यानका स्वरूप और फल
४९३-४९७ ४९८ ४९९-५०३ ५०३-५०५
१-१०४
५०६-५३५
५-८ ९-२३ २४-३६ ३७-४७ ४८-५४ ५५-९३ ९४-१०४
शुद्धोपयोग विचार परमात्माके लिए आत्मज्ञानकी आवश्यकता आत्माके तीन प्रकार आत्मभिन्न पदार्थों में आत्मबुद्धि परमात्माका स्वरूप बन्धमोक्षका कारण आत्मज्ञानका फल अज्ञानी और आत्मज्ञानियोंमें तुलना परमात्मज्ञानका फल
५०६-५०७ ५०७-५०८ ५०८-५१२ ५१२-५१६ ५१६-५१९ ५१९-५२१ ५२१-५३२ ५३२-५३५
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