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१५. वृद्धसेवा 777 ) न हि स्वप्ने ऽपि संजाता येषां सद्वत्तवाच्यता ।
यौवने ऽपि मता वृद्धास्ते धन्याः शीलशालिभिः ॥७॥ किं च778 ) प्रायः शरीरशैथिल्यात्स्यात्स्वस्था मतिरङ्गिनाम् ।
यौवने तु क्वचित्कुर्याद् दृष्टतत्त्वो ऽपि विक्रियाम् ।।८ 779 ) वार्धक्येन वपुर्धत्ते शैथिल्यं च यथा यथा ।
___ तथा तथा मनुष्याणां विषयाशा निवर्तते ॥९ *प्रत्यासत्तिसमायातैः संबन्धमात्रसमागतैः । पुनः कीदृशैः । . स्वान्तरजकैः चित्तरजकैः । ते ऽपि वृद्धा बुधैर्मताः ॥६।। अथ पुनस्तेषां लक्षणमाह ।
777 ) न हि स्वप्ने-[ के वृद्धाः । येषां सद्वृत्तवाच्यता शीलनिन्दा लोके न संजाता ते । शीलशालिनः शीलेन शोभमानाः। शेषं सुगमम् ] ||७0 किं च । अथ यौवने ऽपि तल्लक्षणमाह ।
778 ) प्रायः शरीर-वृद्धत्वे अङ्गिनां स्वस्था मतिः स्यात् । कस्मात् । प्रायः शरीरशैथिल्यात् । तु पुनः । यौवने दृष्टतत्त्वो ऽपि क्वचिद्विक्रियां कुर्यात् । इति सूत्रार्थः ।।८।। पुनर्वार्धके यत्तदाह।
779 ) वार्धक्येन-वृद्धस्य भावो वार्धक्यम् । तेन । शेषं सुगमम् । इति सूत्रार्थः ॥९।। अथ तत्संगफलमाह। स्खलित नहीं हुआ है-जो उन सुलभ भोगोंकी प्राप्तिके लिए कभी अधीर नहीं होते हैंउन्हें भी पण्डित जन वृद्ध मानते हैं ॥६॥
जिनका चारित्र स्वप्नमें भी कलंकित नहीं हुआ है उन्हें शीलसे विभूषित मुनिजन युवावस्था में भी वृद्ध मानते हैं । वे धन्य हैं-उनकी प्रशंसा करना चाहिये ।।७।।
इसके अतिरिक्त वृद्धावस्थामें प्रायः शरीरके शिथिल हो जानेसे प्राणियोंकी बुद्धि आत्मस्वरूपमें स्थित होती है। परन्तु युवावस्थामें तो वस्तुस्वरूपका जानकार भी कहीं विकारको कर सकता है। विशेषार्थ-इसका अभिप्राय यह है कि जब वृद्धावस्था में शरीर शिथिल हो जाता है उस समय यदि कोई मनुष्य विषयोंसे विरक्त होकर आत्म-कल्याणमें प्रवृत्त होता है तो यह विशेष आश्चर्य की बात नहीं है। परन्तु जिस युवावस्था में विकारके अनेकों साधन उपस्थित रहते हैं उस अवस्था में भी जो विवेकी जीव उन विषयोंसे विरक्त होकर आत्महितकी इच्छासे संयम व तपश्चरण आदिमें प्रवृत्त हो जाते हैं वे अतिशय प्रशंसनीय हैं ।।८।।
वृद्धावस्थाके कारण जैसे-जैसे शरीर शिथिलताको धारण करता है वैसे-वैसे मनुष्योंकी विषयतृष्णा नष्ट होती जाती है । अभिप्राय यह है कि वृद्धावस्था में शरीरके शिथिल हो जानेसे मनुष्योंकी विषयलोलुपता प्रायः स्वयमेव शान्त हो जाती है ॥९॥ १. All others except PJ संयाता। २. Y ऽपि क्वचिद्वृद्धा । ३. J शालिनः । ४. P M L F किं च । ५. N स्वस्था देहिनां मतिः । ६. N वार्धक्ये तु वपु ।
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