Book Title: Gyanarnav
Author(s): Shubhachandra Acharya, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 827
________________ 7. शुद्धिपत्रम् पृष्ठम् पङ्क्तिः शुद्धम् 105 244 or 257 . नित्यानित्या स्थिचर्वणात् धैर्यनाशं कर्म मृगतृष्णा कलयत्युत्कृष्टता चतुर्थम् 314 378 406 420 455 476 525 533 537 पर्यत 000000+ ---- अशुद्धम् नित्यानित्या स्थिचवणात् धैयनाशं यत्कृतं कम मृततृष्णा कलयत्युष्कृष्टता चतुथम् पयङ्क गभस्य ऽन्यत्रव मन्य विचयो जोवैविष परिमोत्सव कल्पातीतास्तता श्रुतस्काधाद् मायायुगं 553 गर्भस्य ऽन्यत्रव मन्ये विचयो जीवविष परमोत्सवं कल्पातीतास्ततो श्रुतस्कन्धाद् मायायुगं 594 601 628 637 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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