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ज्ञानार्णवः
[३०.७२१1624 ) उक्तं च
सूक्ष्म जिनेन्द्रवचनं हेतुभिर्यन हन्यते ।
आज्ञासिद्धं च तद्ग्राह्यं नान्यथावादिनो जिनाः ॥७*१॥ इति ॥ 1625 ) प्रमाणनयनिक्षेपैर्निर्णीतं तत्त्वमञ्जसा ।
स्थित्युत्पत्तिव्ययोपेतं चिदचिल्लक्षणं स्मरेत् ॥८ 1626 ) श्रीमत्सर्वज्ञदेवोक्तं श्रुतज्ञानं च निर्मलम् । शब्दार्थनिचितं चित्रैमत्र चिन्त्यमविप्लुतम् ॥९।।
__ श्रुतज्ञानं तद्यथा___1624) सूक्ष्मं जिनेन्द्र-[ हेतुभिः कारणैः यत् न हन्यते अन्यथाक्रियते । अन्यथावादिनः मृषावादिनः । इति सूत्रार्थः ।।७*१।। ] अथ चिदचिल्लक्षणमाह ।
1625) प्रमाणनय-प्रमाणं, नयाः स्वसंग्रहाद्याः, निक्षेपाः नामादयः, तैः। तत्वम् अञ्जसा सुखेन निर्मितं चिदचिल्लक्षणं स्थित्युत्पत्तिव्ययोपेतं स्मरेत् । इति सूत्रार्थः ॥८॥ अथ श्रुतज्ञानमाह ।
___1626) श्रीमत्सर्वज्ञ-अविप्लुतमनुपद्रुतम् । शेषं सुगमम् । इति सूत्रार्थः ॥९॥ श्रुतज्ञानं
तद्यथा।
चूंकि जिनेन्द्रका वचन-उनके द्वारा उपदिष्ट वस्तुतत्त्व-सूक्ष्म है जो हेतुओं (युक्तियों) के द्वारा खण्डित नहीं किया जा सकता है अतएव उसे जिनेन्द्र भगवानकी 3
सिद्ध ही ग्रहण करना चाहिए। कारण यह कि वे जिनेन्द्र वस्तुस्वरूपका अन्यथा उपदेश करनेवाले नहीं हैं । विशेषार्थ-पदार्थों में ऐसे बहुतसे हैं जिनका ज्ञान अतिशय सूक्ष्म होनेसे छद्मस्थ जीवोंको नहीं हो सकता है । अतएव उनका स्वरूप वीतराग सर्वज्ञके द्वारा जैसा निर्दिष्ट किया गया है, उसी प्रकारसे ग्रहण करके उनके विषयमें श्रद्धान करना चाहिए। कारण यह कि लोकमें अन्यथा उपदेशके दो ही कारण उपलब्ध होते हैं-विवक्षित तत्त्व विषयक अज्ञान
और कषायावेश । सो ये दोनों ही कारण जिनेन्द्रदेवके नहीं रहे हैं, क्योंकि, वे सर्वज्ञ और वीतराग हैं। इसीलिए उनके द्वारा तत्त्वका अन्यथा उपदेश सम्भव नहीं है। ऐसा विचार करते हुए जिनोपदिष्ट तत्त्वका चिन्तन करना, यह आज्ञाविचय धर्मध्यान है ॥७१।।
जो स्थिति (ध्रौव्य ), उत्पाद और व्ययरूप सामान्य लक्षणसे संयुक्त है उसका नाम तत्त्व (द्रव्य ) है । वह चेतन और अचेतनके भेदसे दो प्रकारका है। इनके विविध प्रकारके स्वरूपका निर्णय प्रमाण, नय और निक्षेपके आश्रयसे भलीभाँति करके इस आज्ञाविचय धर्मध्यानमें चिन्तन करना चाहिए ।।८।।
श्रीमान् सर्वज्ञ देवके द्वारा जो शब्द और अर्थसे परिपूर्ण अनेक प्रकारका निर्मल श्रुतज्ञान कहा गया है उसका निर्बाधस्वरूपसे चिन्तन करना चाहिए ।।९।। १. M N जिनोदितं तत्त्वं । २. P M इति । ३. J निष्फलम् । ४. J तत्त्वमवचिन्त्यं । ५. Only in PM Y श्रुत etc. I
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