Book Title: Gyanarnav
Author(s): Shubhachandra Acharya, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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७२४
ज्ञानार्णवः
1200
1660
856
570
383
सिद्धान्तसूत्र
903 सिद्धेः सौधं
1972 सिध्यन्ति सिद्धयः 1941 सिवर्ण मस्तकाम्भोजे सुखदुःखजय
665 सुखदुःखजय (change) 1428 सुखामृतमहा
1818 सुगुप्तेन स्वकायेन 176 सुचिरं सुष्टु
739 सुतस्वजनदारार्थे सुतस्वजनभूपाल 850 सुतीव्रासात
124 सुतृप्तः सर्वदैव 2218 सुधाम्बुप्रभवः
1901 सुधांशुरश्मि
787 सुनिर्णीतस्व
1342 सुप्तेष्वक्षेषु
920 सुप्रयुक्तः सुप्रापं न पुनः
242 सुरं त्रिदश
1525 सुराचल इव
682 सुरायुरारम्भक 1676 सुरासुर
99 सुरेन्द्रप्रतिमा
688 सुरोरगनराधीश 1671 सुरोरगनरैश्वर्य
85 सुलभमिह
243 सुलभेष्वपि
790 सुवृत्तं बिन्दु
1366 सुसंवृतेन्द्रिय
1556 सूक्ष्मक्रियं ततः
2194 सूक्ष्मक्रिया
2151 सूक्ष्म जिनेन्द्र
1624 सूत्रे दत्तावधानाः 770 सूनृतं करुणा सेनासंचार
1295 सो ऽयं समरसी 1508
सो ऽहं सर्वगतः 2107 सो ऽहं सिद्धः
1646 सौख्यार्थे दुःख
493 सौधर्माद्यच्युतान्ताः 1868 सौधर्मो ऽयं महा 1833 सौधोत्संगे श्मशाने 1175 स्तम्भादिके महेन्द्रः 1373 स्थानासन
1321 स्थानेष्वेतेषु
1469 स्थितिमासाद्य
2206 स्थित्युत्पत्तिव्ययोपेतं 1633 स्थित्युत्पत्तिव्ययोपेतैः
1690 स्थिरीकृतशरीरस्य 905 स्थिरीकृत्य मनः 736 स्थिरीभवन्ति
1359 स्नुषां श्वश्रू
636 स्फुरद्विमल
1953 स्फुरन्तं नेत्र
1928 स्फुरन्तं भूलता 1927 स्फुरन्ति हृदि
748 स्फुलिङ्गपिङ्गलं 1367 स्फेटयत्याशु
2115 स्मरकर्मकलकोष 1976 स्मरगरल
1453 स्मरज्वलन
700 स्मरदहन
640 स्मर दुःखानल 1945 स्मरप्रकोप
604 स्मरभोगीन्द्रदुर्वार 818 स्मरभोगीन्द्रवल्मीकं. 847 स्मर मन्त्रपदं स्मर मन्त्रपदाधीशं
2022 स्मर मन्त्रपदोभूतां 1962 स्मरव्याल
609 स्मरशीतज्वरातङ्क स्मर सकलसिद्ध
1995 स्मरेन्दुमण्डलाकारं 1978
स्मरोत्संगमपि
671 स्यातां तत्रात स्यादियं योग
2157 स्याद्यद्यत्प्रीतये
1555 स्याद्वादपवि
2039 स्रक्शय्यासन स्वजनधन
824 स्वजातीयैरपि स्वज्ञानादेव
915 स्वतत्त्वविमुखैः
27 स्वतत्त्वानुगतं 1109 स्वतालुरक्तं
716 स्वपरान्तर
1560 स्वपुत्रपौत्रसंतानं 511 स्वप्नदृष्टविनाशे 1610 स्वप्ने ऽपि कौतुकेनापि 2085 स्वबोधादपरं
1575 स्वभावजनिरातङ्क 364 स्वभावजमनातवं 1127 स्वभावजमसंदिग्धं 2047 स्वयमेव प्रजायन्ते 1265 स्वयमेव हि
2091 स्वयं गन्तुं
421 स्वयं नष्टो जनः 239 स्वयं स्वकर्म
134 स्वर्गी पतति
122 स्वर्णगौरी स्वरोद्भूतां 1980 स्वर्णाचल इव
368 स्वर्णाचलमयों
1883 स्वविमानमिदं
1836 स्वविभ्रम
1471 स्वविभ्रमोद्भवं 1566 स्वशरीरमिव
1527 स्वसंवित्ति
1012 स्वसिद्धयर्थ
32 स्वस्वरूपमति स्वातन्त्र्यमभि
653
2017
535
702
154
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