Book Title: Gyanarnav
Author(s): Shubhachandra Acharya, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-६६ ]
३५. पदस्थध्यानम्
1977 ) सर्वसत्त्वाभयस्थानं वर्णमालाविराजितम् ।
स्मर मन्त्रं जगजन्तुक्लेशसंततिघातकम् ॥६४
ओं नमो ऽर्हते केवलिने परमयोगिने' विस्फुरदुरुशुक्लध्यानाग्निनिर्दग्धकर्मबीजाय प्राप्तानन्तचतुष्टयाय सौम्याय शान्ताय मङ्गलेवरदाय अष्टादशदोषरहिताय स्वाहा ।
1978 ) स्मरेन्दुमण्डलाकारं पुण्डरीकं मुखोदरे । दलाष्टकसमासीनवर्गाष्टकविराजितम् ||६५
1979 ) ओं णमो अरहंताणमिति वर्णानपि क्रमात् । एकशः प्रतिपत्रं तु तस्मिन्नेव निवेशयेत् ॥ ६६
६३१
(1977) सर्वसत्त्वाभय - [ सर्वेषां सत्त्वानां प्राणिनाम् अभयस्थानम् । वर्णमालाभिः विराजितं शोभितम् । अन्यत्सुगमम् ||६४ || ] ओं नमो ऽर्हते केवलिने परमयोगिने अनन्तविशुद्धिपरिणामचिद्रूप विशुद्धपरिणाम चित्तविस्फुरद्गुरुशुक्लध्यानाग्निनिर्दग्धक मंबीजाय प्राप्तानन्तचतुष्टयाय सौम्याय शान्ताय मङ्गलाय वरदाय अष्टादशदोषरहिताय स्वाहा ।
1978) स्मरेन्दु - मुखोदरे पुण्डरीकं कमलं स्मर चिन्तय । इन्दुमण्डलाकारम् । पुनः कीदृशम् । दलाष्टकसमासीनम् । सुगमम् । श्रवर्णाष्टकविराजितम् । सुगमम् । इति सूत्रार्थः ॥६५॥ [अथ मन्त्रस्थापनामाह । ]
1979) ओं णमो - ओं नमो अरहंताणं । इत्यादिवर्णान् एकशः प्रतिपत्रं तु तस्मिन्नेव निवेशयेत् स्थापयेत् । इति सूत्रार्थः ||६६ || [ पुनस्तदेवाह । ]
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जो यह मन्त्र सब प्राणियोंकी निर्भयताका कारण वर्णमालासे सुशोभित और जगत् के प्राणियोंके कष्टसमूहका विनाशक है उसका स्मरण करना चाहिए - ॐ नमोऽहते केवलिने परमयोगिने विस्फुरदुरुशुक्लध्यानाग्निनिर्दग्धकर्मबीजाय प्राप्तानन्तचतुष्टयाय सौम्याय शान्ताय मंगलत्ररदाय अष्टादशदोषरहिताय स्वाहा ||६४ ||
मुखके भीतर आठ पत्तोंके ऊपर स्थित आठ वर्गों - अकारादि १६ स्वर, कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, पवर्ग, अन्तस्थ ( य र ल व ) और ऊष्म ( श ष स ह ) इन वर्णसमूहों से सुशोभित ऐसे चन्द्रमण्डलके आकार कमलका स्मरण करना चाहिए ||६५ ||
उसी कमलके ऊपर प्रत्येक पत्रपर 'ॐ नमो अरहंताणं' इन आठ वर्णों में से क्रमसे एकएक वर्णको स्थापित करना चाहिए || ६६॥
१. All others except P योगिने ऽनंत (ML विशुद्ध) शुद्धपरिणामस्फुर । २. All others except P L मङ्गलाय । ३. M विरहि । ४. J दरं । ५. All others except PM N 'सीनवर्णाष्टक |
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