Book Title: Gyanarnav
Author(s): Shubhachandra Acharya, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 751
________________ ६६२ ज्ञानार्णवः 2094) अथ रूपे स्थिरीभूतचित्तः प्रक्षीणविभ्रमः । अमूर्तमॅजमव्यक्तं ध्यातुं प्रक्रमते ततः ||१५ 2095 ) चिदानन्दमयं शुद्धमभूतं ज्ञानविग्रहम् । स्मरेद्यत्रात्मनात्मानं तद्रूपातीतमिष्यते ॥ १६ ॥ अथवा2096 ) वदन्ति योगिनो ध्यानं 'चित्तमेवमनाकुलम् । कथं शिवत्वमापन्नमात्मानं संस्मरन्मुनिः ॥ १७॥ तद्यथा 2097 ) विविच्य तद्गुणग्रामं तत्स्वरूपं निरूप्य च । अनन्यशरणो ज्ञानी तस्मिन्नेव लयं व्रजेत् ॥ १८ [ ३७.१५ 2094 ) अथ रूपे–रूपे स्थिरीभूते । अथ अनन्तरम् । स्थिरीभूतचित्तः । प्रक्षीणविभ्रमः नष्टमिथ्यात्वः । अमूर्तादिविशेषणत्रयं सुगमम् । ध्यातुं प्रक्रमते ततः उद्यमं करोतीति सूत्रार्थः || १५ || अथ ध्यानमाह । 2095 ) चिदानन्द - अहं स्मरे चिन्तयामि आत्मानम् । तद् ध्यानं रूपातीतम् इष्यते । शेषं सुगमम् । इति सूत्रार्थः ||१६|| अथवा पक्षान्तरमाह । 2096 ) वदन्ति - मुनिः कथं शिवत्वमापन्नं प्राप्तम् आत्मानं संस्मरेत् । शेषं सुगमम् । इति सूत्रार्थः ||१७|| तद्यथा दर्शयति । - 2097 ) विविच्य - तद्गुणग्रामं विवेच्य * विवेकीकृत्य । च पुनः । तत्स्वरूपम् आत्मपरमार्थं निरूप्य कथयित्वा अनन्यशरणः ज्ञानी तस्मिन्नेवात्मनि लयं ध्यानं व्रजेत् । इति सूत्रार्थः || १८ || अथात्मनः परमात्मनि संयोजनमाह । इस प्रकार जिस योगीका चित्त उस वीतराग देवके स्वरूप में स्थिर हो चुका है तथा जिसकी विपरीत बुद्धि सर्वथा नष्ट हो चुकी है वह उसके पश्चात् अमूर्त, अजन्मा और अव्यक्त आत्माके ध्यानको प्रारम्भ करता है || १५ || जिस ध्यान में शुद्ध - कर्ममलसे रहित, अमूर्त और ज्ञानमय शरीरसे संयुक्त ऐसे चेतन व आनन्दस्वरूप आत्मा स्मरण किया जाता है उसे रूपातीत ध्यान माना गया है ||१६|| अथवा, आकुलतासे रहित जो चित्त है उसे ही योगी ध्यान कहते हैं । इसका कारण यह है कि जो जीव मुक्तिको प्राप्त हो चुका है, मुनि उसका ध्यान कैसे कर सकता है ? नहीं कर सकता है || १७ ॥ Jain Education International वह इस प्रकारसे - ज्ञानी योगी मुक्तिको प्राप्त हुए सिद्धात्मा के गुणसमूहका विचार करके और उसके स्वरूपका अवलोकन करके एकमात्र उसको ही शरण मानता हुआ उसीमें लीन हो जाता है ॥ १८ ॥ १. L भूते । २. T अमूर्ति । ३. LSTFJ X Y R मूर्तं परमाक्षरम् । ४. L मीक्ष्यते, F Jमीक्षते । ५. P अथवा । ६. N चिन्तामय, PM चितामयमनां । ७, PM तद्यथा । ८. All others except M विवेच्य | For Private & Personal Use Only · www.jainelibrary.org

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