Book Title: Gyanarnav
Author(s): Shubhachandra Acharya, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 753
________________ ६६४ ज्ञानार्णवः [ ३७.२३ 2102) लोकाग्रशिखरासीनं शिवीभूतमनामयम् । पुरुषाकारमापनमेप्यमूर्तं च चिन्तयेत् ॥ २३॥ तथा हि 2103) निष्कलस्य विशुद्धस्य निष्पन्नस्य जगद्गुरोः । चिदानन्दमयस्योच्चैः कथं स्यात्पुरुषाकृतिः ||२४|| तद्यथा2104) विनिर्गतमधूच्छिष्टप्रतिमे मूषिकोदरे । यादृग्गगनसंस्थानं तदाकारं स्मरेद्विभुम् ||२५ अनाकारम् आकाररहितम् । पुनः कीदृशम् । निष्पन्नं कृतकृत्यम् । शान्तं दुःखानलसंतापाभावात् । पुनः कीदृशम् | अच्युतम् । पुनः कीदृशम् । चरमाङ्गात् स्वप्रदेशः घनैः कियदूनं स्थितम् । इति सूत्रार्थः ||२२|| अथ पुनरात्मस्वरूपमाह । 2102) लोकाग्र - कीदृशम् । लोकाग्रशिखरासीनं सुगमम् । पुनः कीदृशम् । अनामये आरोग्ये शिवीभूतमापन्नं व्याप्तम् । यथा अमूर्तं विचिन्तयेत् । इति सूत्रार्थः ||२३|| तथा हि । 2103) निष्कलस्य - [ निष्कलस्य निरंशस्य । चिदानन्दमयस्य चैतन्यमोदरूपस्य । पुरुषाकृतिः कथं स्यात् । न कथमपि । इति सूत्रार्थः ||२४|| ] अथ पुनराह | 2104 ) विनिर्गत - विनिर्गतमधूच्छिष्टप्रतिमे गतशक्तिकासदृशे [?] । तत्र यादृग् गगनसंस्थानं गगनाकारं तदाकारं विभुं स्मरेत् । इति सूत्रार्थः ||२५|| अथ पुनराह । Jain Education International आकार से रहित - अमूर्तिक, निष्पन्न - सिद्धिको प्राप्त हुआ, राग-द्वेषसे रहित, जन्मान्तरसंक्रमण से मुक्त, अन्तिम शरीर के प्रमाणसे कुछ हीन, अविरल आत्मप्रदेशोंसे स्थित, लोकके उपरि शिखर पर विराजमान, आनन्दस्वरूपसे परिणत, रोगसे रहित और पुरुषके आकार होकर भी अमूर्तिक; ऐसे सिद्धात्माका चिन्तन करना चाहिए ।।२२-२३ ।। इसको आगे स्पष्ट करते हैं- जो सिद्ध जीव शरीरसे रहित, कर्म - मलसे विमुक्त, सिद्धिको प्राप्त, लोकका नायक और अतिशय ज्ञानानन्दमय है उसके भला पुरुषका आकार कैसे हो सकता है ? नहीं हो सकता है । अभिप्राय यह है कि जब सिद्ध जीव पुद्गलमय शरीर से रहित हो चुका है तब उसका पुरुषके आकारसे स्थित रहना सम्भव नहीं है ॥२४॥ फिर उसको पुरुषाकार क्यों कहा जाता है, इसको आगे उदाहरण द्वारा स्पष्ट करते हैं - जिसके मध्यभागसे मैन गल चुका है ऐसे प्रतिमा (मूर्ति) स्वरूपसे परिणत चूहे के उदरके भीतर जिस प्रकार उस चूहेके आकार में केवल शुद्ध आकाश रह जाता है उसी प्रकार मुक्ति अवस्था में शरीर के छूट जानेपर अमूर्तिक आत्मप्रदेश उस पूर्व शरीर के आकार में स्थित जाते हैं । यही सिद्ध जीवकी पुरुषाकारता है ||२५|| रह १. X पुरुषाकारसंपन्नमथामूर्तं विचिन्तं । २. PM तथा हि । ३. PM तद्यथा । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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