Book Title: Gyanarnav
Author(s): Shubhachandra Acharya, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 768
________________ ६७९ -११] ३९. शुक्लध्यानफलम् 2149 ) सवितर्क सवीचारं सपृथक्त्वं च कीर्तितम् । शुक्लमाद्यं द्वितीयं तु विपर्यस्तमतो ऽपरम् ॥८ 2150 ) सवितर्कमवीचारमेकत्वपदलाञ्छितम् । कीर्तितं मुनिभिः शुक्लं द्वितीयमतिनिर्मलम् ।।९ 2151 ) सूक्ष्मक्रियाप्रतीपाति तृतीयं सार्थनामकम् । समुच्छिन्नक्रियं ध्यान तुर्यमानिवेदितम् ।।१० 2152 ) तत्र त्रियोगिनामाचं द्वितीयं त्वेकयोगिनाम् । तृतीयं तेनुयोगानां स्यात्तुरीयमयोगिनाम् ॥११॥ तद्यथा2149) सवितर्क-अतः प्रथमभेदात्परं द्वितीयं विपर्यस्तम् अवितर्कम् । सवीचारादिरूपम् । इति सूत्रार्थः ।।८।। अथ द्वितीयभेदमाह। 2150) सवितर्कमवीचारं-[ एकत्वपदलाञ्छितम् एकत्वपदचिह्नितम्। सवितर्क वितर्केण सहितम् । मुनिभिः कीर्तितं कथितम् । इत्यर्थः ] ॥९॥ अथापरभेदमाह। ___2151) सूक्ष्मक्रिया-तृतीयं शुक्लध्यानभेदम् । सूक्ष्मा क्रिया यस्मिन् तत् सूक्ष्मक्रियं च । अप्रतिपाति च अपतनशीलम् । सार्थनामकम् । तुर्यं चतुर्थं समुच्छिन्नक्रियम् । ध्यानम् आदी आचार्यैः निवेदितं कथितम् । इति सूत्रार्थः ।।१०।। अथ येषां यद्भवति तत्तदाह। 2152) तत्र त्रियोगिनाम्-तत्र च त्रियोगिनां मनोवाक्काययोगिनाम् आद्यं शुक्लध्यानभेदं भवति । एकयोगिनां मनोवाक्कायस्य इतरयोगवतां द्वितीयं भवति । तनुयोगानां तृतीयं भेदं स्यात् । अयोगिनां तुरीयं चतुर्थं स्यात् । इत्यर्थः ॥११॥ तद्यथा दर्शयति । प्रथम पृथक्त्व वितर्क नामका शुक्लध्यान वितर्कवीचार और पृथक्त्व ( नानात्व) से सहित कहा गया है तथा दूसरा उससे विपरीत है। वह एकत्व ( अभेद ) पदसे चिह्नित होकर वितर्कसे सहित और वीचारसे रहित है, ऐसा मुनियोंके द्वारा कहा गया है। यह दूसरा शुक्लध्यान अतिशय निर्मल है। उक्त पृथक्त्वादिका स्पष्टीकरण आगे (श्लोक १४ आदि ) ग्रन्थकार द्वारा स्वयं किया जानेवाला है ।।८-९॥ तीसरा शुक्लध्यान सूक्ष्म क्रियाप्रतिपाती इस सार्थक नामवाला है-वह वचन व मन योगोंसे सर्वथा रहित तथा बादर काययोगको सूक्ष्म करनेवाले केवलीके होनेके कारण सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाती कहा जाता है। चतुर्थ शुक्लध्यान पूज्य जनोंके द्वारा समुच्छिन्नक्रिय (व्युपरतक्रियानिवृत्ति)-सक्ष्म कायकी क्रियासे भी रहित-निर्दिष्ट किया गया है॥१०॥ उक्त चार शुक्लध्यानोंमें प्रथम ध्यान मन, वचन व काय इन तीनों योगवालोंके; दूसरा तीन योगों में से किसी एक योगवालेके, तीसरा काययोगवालोंके और चौथा योगसे रहित अयोग केवलियोंके होता है ।।११।। १. J च for तु । २. L F T°मतः परम् । ३. M N सार्वनायकं । ४. M क्रिया ध्यानं, N क्रियध्यानं । ५. N काययोगानां । ६. Y स्यात्तुर्यमदयोगिनां । ७. PM तद्यथा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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