Book Title: Gyanarnav
Author(s): Shubhachandra Acharya, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-६८ ]
३९. शुक्लध्यानफलम् 2212) त्रिकालविषयाशेषेद्रव्यपर्यायसंकुलम् ।
जगत् स्फुरति बोधार्के युगपद्योगिनां पतेः ॥६४ 2213) सर्वतो ऽनन्तमाकाशं लोकेतरविकल्पितम् ।
तस्मिन्नपि धनीभूय यस्य ज्ञानं व्यवस्थितम् ॥६५ 2214) निद्रात न्द्राभयभ्रान्तिरागद्वेषार्तिसंशयैः ।
शोकमोहजराजन्ममरणाद्यैश्च विच्युतः ॥६६ 2215) क्षुत्तश्रममदोन्मादमूर्छामात्सर्यवर्जितः।
वृद्धिहासव्यपेतात्मा कल्पनातीतवैभवः ॥६७ 2216) निष्कलः करणातीतो निर्विकल्पो निरञ्जनः।
अनन्तवीर्यतापन्नो नित्यानन्दाभिनन्दितः ॥६८ 2212) त्रिकाल-त्रिकालविषयाः ये अशेषद्रव्यपर्यायाः तैः संकुलं व्याप्तम् । योगिनां पतेः तीर्थकरस्य बोधार्के ज्ञानसूर्ये जगत् स्फुरति । इति सूत्रार्थः ।।६४॥ पुनर्ज्ञानस्य विषयमाह ।
2213) सर्वतोऽनन्तम्-सर्वतः सर्वत्र अनन्तम् आकाशं लोकोत्तरविकल्पितं लोकप्रमितासंख्येयखण्डकल्पितम् । तस्मिन्नपि आकाशे घनीभूय यस्य सिद्धस्य ज्ञानं व्यवस्थितम् । इति सूत्रार्थः ।।६५।। अथ पुनः कीदृशः इत्याह । ___2214) निद्रा तन्द्रा-विच्युतः रहितः । शेषं सुगमम् । इति सूत्रार्थः ॥६६॥ [ पुनः कीदृशः तदाह ।]
.. 2215-17) क्षुत्तशम-क्षुधादिशरीरधर्मैः वर्जितः रहितः । वृद्धिह्रासव्यपेतात्मा । वृद्धिश्च ह्रासश्च ताभ्यां रहितः आत्मा स्वरूपं यस्य सः। अनन्तवीर्यतापन्नः अपरिमितसामर्थ्यस्वादिष्ट सुखको भोगेंगे; उससे अनन्तगुणे अतीन्द्रिय व स्वाभाविक उस सुखको वह सिद्ध परमात्मा एक समयमें भोगता है ॥६१-६३।।
योगियोंके अधिपतिस्वरूप उस सिद्ध परमात्माके ज्ञानरूप सूर्यमें तीनों कालों विषयक समस्त द्रव्यों और उनकी पर्यायोंसे व्याप्त लोक प्रकाशमान होता है ॥६४॥
लोक और अलोक इन दो भेदोंमें विभक्त आकाश सब ओरसे अनन्त है-उसका अन्त किसी ओरसे भी नहीं पाया जाता है। उस अनन्त आकाशमें भी सिद्धात्माका ज्ञान निरन्तर व्यवस्थित है-सिद्ध परमात्मा समस्त लोक और अनन्त अलोकको भी सदा प्रत्यक्ष देखते हैं ॥६५।।
निद्रा, आलस्य, भय, भ्रम, राग, द्वेष, पीड़ा, संशय, शोक, मोह, जरा, जन्म और मरण आदिसे रहित; क्षुधा, तृष्णा, परिश्रम, मद, उन्माद (विषयासक्ति), मूर्छा और ईर्ष्याभावसे विहीन; वृद्धि-हानिसे रहित स्वरूपसे संयुक्त, अकल्पनीय (अचिन्त्य) वैभवसे परिपूर्ण, शरीरसे रहित, इन्द्रियोंसे अतीत, विकल्पोंसे निष्क्रान्त, कलंकसे युक्त, अनन्त वीर्यस्वरूपको
१.Jशेषं । २.J लोकोत्तर....ज्ञाने । ३. S T J X Y R व्यतीतात्मा ।
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