Book Title: Gyanarnav
Author(s): Shubhachandra Acharya, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

View full book text
Previous | Next

Page 800
________________ क्षुत्तृश्रम क्षुत्तृश्रमाभि क्षुद्रजन्तुपशु क्षुद्रध्यानपर क्षुद्रेतर विकल्पेषु क्षुभ्यन्ति ग्रह क्षेत्रजाति क्षेत्राणि रमणीयानि खण्डितानां खपुष्पमथवा ख्यातिपूजा गगनघन गगननगर गगनवन गजाश्वनर गर्भादारभ्य गलत्येवायुः गलन्मलद गुणाधिकतया गुरवो लाघवं 1820 गावः कामदुघाः गीतवादित्र निर्घोषैर्जय गीतवादित्रनिर्घोषैः स्तुति 1858 गीतवादित्रविद्यासु 1804. गीयते यत्र गुणरिक्तेन गुणा गौणत्व 81 984 576 1010 586 1952 900 668 1458 1681 675 1425 2130 711 90 गुरुपञ्चनमस्कार गृहृतो ऽस्य गृह्णन्ति विप गोचरेभ्यो हृषीकाणि गोत्राख्यं जन्तु गौरवेषु प्रतिष्ठासु ग्रामपुरयुद्ध ग्रैवेयकानुत्तर ग्लानिर्मूर्च्छा घनमालानुकारीणि 2215 1275 1296 2089 1271 1170 Jain Education International 1292 1661 560 300 1191 2222 96 1230 108 104 88 1587 1787 श्लोकानुक्रमणिका घनाब्धिः प्रथमः घनाब्धिवलये घृणास्पदमति घोणाविवरमध्यास्य घोणाविवरमापूर्य घोरतरः संग्रामः प्रायन्ते पूतयः चक्षुरुन्मेष चञ्चद्भिश्चिर चतस्रो भावनाः चतुर्गतिमहा चतुर्दश समासेषु चतुर्धा गति चतुर्धा घ्यानं चतुर्वर्णमयीं चतुविशतिपत्राढ्यं चन्द्रकान्त शिला चन्द्रमूर्तिरिवानन्द चन्द्रलेखासमं चन्द्रः सान्द्रैः चमत्कारकरं चरणज्ञानयोर्बीजं चरणज्ञानसंपन्नाः चरस्थिरभवोद्भूत चरस्थिरविकल्पासु चरस्थिरार्थजातेषु चरस्थिरार्थ संकीर्णे चरुमन्त्रौषधानां चलत्यचलमालेयं चलत्येवाल्प चलमप्यचलाकारं चापलं त्यजति चारित्रमोह चालयन्तं सुरानीकं चित्तप्रपञ्च चित्तप्लवङ्गं चित्तमेकं न 1693 1695 616 1361 1369 1403 1713 1744. 816 1270 116 413 401 1878 1965 1913 1784 559 1937 1171 195 443 1325 399 1678 879 2219 498 1176 2116 1585 880 1674 1897 1079 1136 1095 For Private & Personal Use Only चित्तशुद्धिमासाद्य चित्ते तव विवेक चित्ते निश्चलतां चिदचिद्रूपता चिदचिद्रूपि चिदचिल्लक्षणैः चिदानन्दगुणोपेताः चिदानन्दमयं चिन्तयन्ति तदा चिचित् चिन्तामणिनिधिः चिराभ्यस्तेन चुराशीलं विनिश्चित्य चेतः प्रसत्ति चेन्मामुद्दिश्य चौर्योपदेश छत्रगजतुरग छद्मस्थयोगिनां छाद्यमानमपि छित्त्वा प्रशम छिन्ने भन्ने जगत्त्रयचमत्कारि जगत्त्रयजयी जगद्वञ्चन जगद्वन्द्य सतां जनन्यो यमिनां जनसंसर्गवाक् जन्तुजातमिदं जन्मजानन्त जन्मज्वर जन्मनः प्रति जन्मभूमिरविद्यानां जन्ममृत्युरुजा जन्मशतजनित जन्मोग्रभ्रम जम्बूद्वीपादय: जयजीवित ७११ 1090 263 379 589 1131 1148 1873 2095 1714 54 204. 965 580 2019 94.5 1246 1374 2147 996 1150 2118 1278 100 1028 568 906 1590 614 38 1475 1651 989 2041 1454 520 1772 1399 www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828