Book Title: Gyanarnav
Author(s): Shubhachandra Acharya, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 779
________________ ६९० ज्ञानार्णवः [३९.४२2190) ततः क्रमेण तेनैव स पश्चाद्विनिवर्तते । लोकपूरणतः श्रीमान् चतुर्भिः समयैः पुनः ।।४२ 2191) काययोगे स्थितिं कृत्वा बादरे ऽचिन्त्यचेष्टितः । सूक्ष्मीकरोति वाक्चित्तयोगयुग्मं स बादरम् ।।४३ 2192) काययोगं ततस्त्यक्त्वा स्थितिमासाद्य तद्वये । स सूक्ष्मीकुरुते पश्चात् काययोगं च बादरम् ॥४४ 2193) काययोगे ततः सूक्ष्मे पुनः कृत्वा स्थिति क्षणात् । योगद्वयं निगृह्णाति सद्यो वाञ्चित्तसंज्ञकम् ।।४५ 2190) ततः क्रमेण-[ पुनः तेनैव क्रमेण स विनिवर्तते प्रत्यावर्तते। शेषं सुगमम् । इति सूत्रार्थः ॥४२॥ ] अथ पुनस्तदेवाह। 2191) काययोग-बादरे काययोगे स्थिति कृत्वा वाक्चित्तं योगयुग्मं बादरम् । वाङ्मनोयोगं सूक्ष्मीकरोति । कीदृशः । अचिन्त्यचेष्टितः अचिन्त्यकर्तव्यः । इति सूत्रार्थः ॥४३॥ पुनर्विशेषमाह। 2192) काययोग-ततः काययोगं त्यक्त्वा तद्वये वाङ्मनोद्वये स्थितिम् आसाद्य बादरं काययोगम् । च पादपूरणे । पश्चात् सूक्ष्मीकुरुते । इति सूत्रार्थः ॥४४॥ ततो विशेषमाह। ____2193) काययोगे-ततः सूक्ष्मे काययोगे क्षणात् स्थितिं कृत्वा योगद्वयं न गृह्णाति । सूक्ष्मत्वात् । किम् । वाक्संज्ञकचित्तम् । इति सूत्रार्थः ॥४५॥ अथ पुनरपि विशेषमाह । मुख, विश्वव्यापी, विभु, भर्ता, विश्वमूर्ति और महेश्वर इन सार्थक नामोंसे संयुक्त वे अर्हन्त केवली ध्यानके प्रभावसे उसी क्षणमें भोगको प्राप्त कराकर-स्थिति व अनुभागको क्षीण करके-चारों अघातिया कर्मोंकी स्थितिमें आयुके समान करते हैं ॥४०-४१॥ तत्पश्चात् अन्तरंग व बहिरंग लक्ष्मीसे संयुक्त वे अर्हन्त उपर्युक्त लोकपूरणसमुद्घात अवस्थासे चार समयोंमें उसी क्रमसे पीछे लौटते हैं-उनके वे आत्मप्रदेश लोकपूरणसे प्रतर, प्रतरसे कपाट और कपाटसे दण्डरूपमें संकुचित होकर अन्तमें पूर्वके समान शरीरके भीतर प्रविष्ट होकर अवस्थित हो जाते हैं ॥४२।। तब अचिन्त्य चेष्टासे संयुक्त वे भगवान् बादर काययोगमें स्थित होकर बादर वचनयोग और बादर मनयोग इन दोनोंके सूक्ष्म करते हैं ॥४३।। तत्पश्चात् काययोगको छोड़कर और उन सूक्ष्म वचनयोग और मनयोगमें स्थित होकर वे भगवान बादर काययोगको सूक्ष्म करते हैं ॥४४॥ फिर वे उस सूक्ष्म काययोगमें स्थित होकर क्षणभरमें वचनयोग, मनयोग, नामवाले उन दो योगोंका शीघ्र ही निग्रह करते हैं-उन दोनोंको नष्ट कर देते हैं ॥४५॥ १. M N योगस्थिति । २. N योगे। ३. All others except P M स्थितिं कृत्वा पुनः । ४. M संज्ञिकं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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