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ज्ञानार्णवः
[३६.२८
2060) 'योगीश्वरं तमीशानमादिदेवं चतुर्मुखम् ।
अनन्तमच्युतं शान्त भास्वन्तं भूतनायकम् ॥२८ 2061) सन्मतिं सुगतं सिद्धं जगज्ज्येष्ठं पितामहम् ।
महावीरं मुनिश्रेष्ठं पवित्रं परंमाक्षरम् ॥२९ 2062) सर्वशं सर्वदं सावं वर्धमानं निरामयम् ।
'नित्यमव्ययमव्यक्तं परिपूर्ण पुरातनम् ॥३० 2063) इत्यादिसान्वयानेकपुण्यनामोपलक्षितम् ।
स्मर सर्वगतं देवं तमीश्वरमनामयम् ।।३१ 2060-61) योगीश्वरम्-भास्वन्तं तेजसा द्योतमानम् । भूतनायकम् चराचरस्य अधिपतिम् । पुनः कीदृशम् । जगज्ज्येष्ठं जगतः ज्येष्ठः तम् । मुनीनां श्रेष्ठ मुनिश्रेष्ठम् । अन्यत्सुगमम् । इति सूत्रार्थः ॥२८-२९।। पुनराह ।
2062) सर्वज्ञं-इत्यादिप्रकारेण सान्वयः अन्वयसहितः।* अनेकेन पुण्येन सहितं यन्नाम तेनोपलक्षितं तत्तथा।* शेषं सुगमम् । इति सूत्रार्थः ॥३०॥ पुनरेतदाह।
2063) इत्यादि-सह अन्वयेन वर्तते इति सान्वयः । एतादृशा अनेके योगीन्द्राः, तैः वन्द्यमानं, तेनोपलक्षितम् ।* शेषं सुगमम् । इति सूत्रार्थः ।।३१।। अथ तदेवाह । स्वयम्भू है, चतुर्थ ध्यान (शुक्ल) रूप अग्निमें कर्मरूप इंधनके समूहको होम चुका है-जला चुका है, रत्नत्रयरूप अमृतके झरनेसे संसारके परिभ्रमणको मन्द कर चुका है, परिग्रहसे रहित है, अद्वैतपर विजय पा चुका है-अद्वैतभावमें अवस्थित है, आनन्दस्वरूप है, शान्तिको प्राप्त है, शाश्वत है-अनन्त काल तक इसी अवस्थामें स्थिर रहनेवाला है, पूजाके योग्य है अजन्मा है, अव्यक्त है-सर्वसाधारण के अनुभवमें नहीं आनेवाला है, अभीष्टको प्रदान करनेवाला है, कामका घातक है, पुरातन पुरुष है, आराधनीय है, देवोंका देव है, कर्मरूप शत्रुके विजेताओंमें प्रमुख है, विश्वव्यापक है, उत्कृष्ट ज्योतिस्वरूप है, योगियोंका स्वामी है, महान ऐश्वर्यसे सुशोभित है, रोगसे रहित है, अनादि-अनन्त है, रक्षक है, लोकका अधीश्वर है, योगियोंका स्वामी है; तथा जो आदिदेव, चतुर्मुख, अनन्त, अच्युत, शान्त, भास्वत्, भूतनायक, सन्मति, सुगत, जगज्ज्येष्ठ, पितामह, महावीर, मुनिश्रेष्ठ, पवित्र, श्रेष्ठ अक्षर, सर्वज्ञ, सर्वद, सार्व, वर्धमान, निरामय, नित्य, अव्यय, अव्यक्त, परिपूर्ण व पुरातन आदि सार्थक अनेक पवित्र नामोंसे पहचाना जाता है उस अनन्त वीर्ययुक्त व रोगरहित सर्वव्यापी देवका स्मरण करना चाहिए ॥१४-३१॥
१. M om.। २. S R देवं जगद्गुरुं। ३.X दान्तं for शान्तं । ४. P पुरुमा। ५. P M N L T J om. first line | ६. J नित्यसंग्रहमव्यं । ७. L FJX Y read first line सान्वयानेकयोगीन्द्रवन्धमानोपलक्षितं । ८. M N T F देवं तं (F श्री) वीरं सुरनायकं, LSJX Y R देवं वीरममरनायक।
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