Book Title: Gyanarnav
Author(s): Shubhachandra Acharya, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 644
________________ -२४] ५५५ ३२. विपाकविचयः 1678 ) चरस्थिरविकल्पासु तिर्यग्गतिषु जन्तुभिः । तिर्यगायुःप्रेपाकेन दुःखमेवानुभूयते ॥२१ 1679 ) नारकायुःप्रकोपेन नरके ऽचिन्त्यवेदने । निपतन्त्यङ्किनस्तूर्ण कृतोर्तकरुणस्वनाः ॥२२ 1680 ) नामकर्मोदयः साक्षाद्धत्ते चित्राण्यनेकधा । नामानि गतिजात्यादिविकल्पानीह देहिनाम् ।।२३ 1681 ) गोत्राख्यं जन्तुजातस्य कर्म दत्ते स्वकं फलम् । शस्ताशस्तेषु गोत्रेषु जन्म निष्पाद्य सर्वथा ॥२४ ____1678) चरस्थिर-जन्तुभिः प्राणिभिः दुःखमेवानुभूयते। शेषं सुगमम् । इति सूत्रार्थः ॥२१॥ अथ नारकायुर्दुःखमाह। ___1679) नारकायु:-अङ्गिनः* नरके पतन्ति तूर्णम् । कृतार्तकरुणस्वनाः कृती आर्तकरुणौ स्वनौ येषां ते तथा। शेषं सुगमम् ॥२२॥ अथ नामकर्म आह । 1680) नामकर्मोदयः-नामानि गतिजात्यादीनि विकल्पानि दत्ते अनेकधा। कः। नामकर्मोदयः साक्षात्। कीदृशानि नामानि । गतिजात्यादिविकल्पानि । इति सूत्रार्थः ।।२३।। अथ गोत्रमाह। 1681) गोत्राख्यं-गोत्राख्यं कर्म स्वकं फलं दत्ते। कस्य । जन्तुजातस्य। किं कृत्वा । शस्ताशस्तेषु गोत्रेषु जन्म निष्पाद्य उत्पाद्य सर्वथा । इति सूत्रार्थः ।।२४।। अथान्तरायमाह । तिर्यंच आयुके उदयसे प्राणी त्रस और स्थावर भेदरूप तिर्यंच पर्यायोंमें केवल दुखका ही अनुभव करते हैं ॥२१॥ नारकायुके प्रकोपसे प्राणी करुणापूर्ण विलाप करते हुए शीघ्र ही अचिन्त्य वेदनावाले नरकमें जा पड़ते हैं ॥२२॥ नामकर्मका उदय यहाँ प्राणियोंके गति-जाति आदि भेदोंरूप अनेक प्रकारके विचित्र नामोंको धारण करता है। अभिप्राय यह कि जो जीवको नारक आदि अनेक पर्यायोंको प्राप्त कराता है उसे नामकर्म कहा जाता है। वह गति आदिके भेदसे ब्यालीस प्रकारका अथवा उनके अवान्तर भेदोंकी अपेक्षा तेरानबे प्रकारका है ॥२३॥ गोत्र नामका कर्म प्राणीसमूहको ऊँच और नीच गोत्रों में उत्पन्न कराकर अपने फलको देता है ॥२४॥ १.J तिर्यग्जातिषु । २. All others except P°गायुः प्रकोपेन । ३. P नरका। ४. M°न्त्यङ्गिनः । ५.X कृत्वार्त, LS FY R कृताति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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