Book Title: Gyanarnav
Author(s): Shubhachandra Acharya, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 659
________________ ५७० ज्ञानार्णवः 40 1733 ) किं करोमि क्व गच्छामि कर्मजाते पुरःस्थिते । शरणं कं प्रपश्यामि वराको दैववञ्चितः || ४२ 1734. ) यन्निमेषमपि स्मर्तु द्रष्टुं श्रोतुं न शक्यते । तद्दुःखमत्र सोढव्यं वर्धमानं कथं मया ||४३ 1735 ) एतान्यदृष्टपूर्वाणि बिलानि च कुलानि च । यातनाश्च महाघोरा नारकाणां मयेक्षिताः ॥४४ 1736 ) विषज्वलन संकीर्णं वर्धमानं प्रतिक्षणम् । मम मूनि विनिक्षिप्तं दुःखं दैवेन निर्दयम् ||४५ 1737 ) न दृश्यन्ते ऽत्र ते भृत्या न पुत्रा न च बान्धवाः । येषां कृते मया कर्म कृतं स्वस्यैव घातकम् ||४६ 1733 ) किं करोमि — दैववञ्चितः कर्मवञ्चितः । शेषं सुगमम् । इति सूत्रार्थः ॥४२॥ अथवा एतदेवाह । 1734) यन्निमेषमपि मया वार्धिमानैः (?) अत्र तद् दुःखं सोढव्यम् । यत् निमेषमपि द्रष्टुं श्रोतुं न शक्यते । इति सूत्रार्थः ॥ ४३ ॥ अथ तस्यासह्यतामाह । (1735 ) एतान्यदृष्ट-मया नारकाणाम् एतानि पूर्वोक्तानि । ईक्षिताः दृष्टाः । शेषं सुगमम् । इति सूत्रार्थः ||४४ || अथ पुनर्नरकदुःखमाह । (1736) विषज्वलन - देवेन दुःखं निर्दयं निक्षिप्तं मम मूर्ध्नि । कीदृशम् । विषज्वलनसंकीर्णम् । पुनः । प्रतिक्षणं वर्धमानम् । इति सूत्रार्थः ॥ ४५ ॥ अथ पुनः पश्चात्तापमाह । 1737 ) न दृश्यन्ते येषां कृते कारणाय स्वस्यैव घातकं कर्म कृतं मया । पूर्वार्धं सुगमम् । इति सूत्रार्थं ||४६ || अथ पुनः कर्मवैचित्र्यमाह । [ ३३.४२ दैवसे ठगा गया मैं दीन प्राणी अब यहाँ पूर्वसंचित कर्मसमूह के सामने उपस्थित होनेपर क्या करूँ, कहाँ जाऊँ और किसकी शरण देखूँ ? ॥४२॥ Jain Education International जिस दुःखका क्षणभर भी स्मरण करना, देखना और सुनना भी शक्य नहीं है उस दुःखको मैं यहाँ समुद्र के प्रमाणसे - अपरिमित रूपमें - कैसे सह सकूँगा ? ॥ ४३ ॥ नारकियोंके जिन बिलोंको, कुलोंको और अतिशय भयानक वेदनाओंको पहले कभी नहीं देखा था उन्हें मैं यहाँ देख रहा हूँ - अनुभव कर रहा हूँ ॥४४॥ दैवने निर्दयतापूर्वक मेरे शिरपर विष और अग्निसे व्याप्त उस दुःखको पटका है जो प्रतिसमय बढ़ रहा है ॥४५॥ to भृत्यादिकों के लिए मैंने अपनेको ही नष्ट करनेवाले महान् संकट में डालनेवालेकार्यको किया है उनमें यहाँ न वे भृत्य दिखते हैं, न पुत्र दिखते हैं, और न बन्धु भी दिखते १. MN कं प्रपद्यामि, X Y किं करिष्यामि । २. Y बलानि । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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