________________
-८९]
५८१
३३. संस्थानविचयः 1779 ) तवं सन्ति देवेशकल्पाः सौधर्मपूर्वकाः ।
ते पोडशाच्युतस्वर्गपर्यन्ता नभसि स्थिताः ।।८६ 1780 ) उपर्युपरि देवेशनिवासयुगलं क्रमात् ।
अच्युतान्तं तत ऊध्वमेकैकं त्रिदशास्पदम् ॥८७ 1781 ) निशादिनविभागो ऽयं न तत्र त्रिदशास्पदे ।
रत्नालोकः स्फुरत्युच्चैः सततं चक्षुःसौख्यदः ।।८८ 1782 ) वर्षातपतुषारादिसमयैः परिवर्जितः ।
सुखदः सर्वदा सौम्यस्तत्र कालः प्रवर्तते ।।८९
1779) तदूवं-सौधर्मपूर्वकाः अच्युतस्वर्गपर्यन्ताः षोडश स्वर्गाः नभसि आकाशे स्थिताः । इति सूत्रार्थः ॥८६।। ] अथैतदेवाह ।
1780) उपर्युपरि-त्रिदिवास्पदं देवानां स्थानम् । शेषं सुगमम् । इति सूत्रार्थः ॥८७॥ अथोर्ध्वम् अहोरात्रेरभावमाह ।
1781) निशादिन-सततं निरन्तरं नेत्रसौख्यदः । शेषं सुगमम् । इति सूत्रार्थः ॥८८॥ अथोलोके कालस्वरूपमाह ।
_1782) वर्षातप-तत्र स्वर्गे कालः प्रवर्तते। शेषं सुगमम् । इति सूत्रार्थः ॥८९॥ अथोर्ध्वलोके यन्नास्ति तदाह।
उसके ऊपर-मेरुके ऊपर बाल मात्रके अन्तरसे आकाशमें सौधर्मको आदि लेकर अच्युत स्वर्ग तक वे सोलह देवेन्द्रोंके कल्प अवस्थित हैं ॥८६॥
ये देवेन्द्रोंके विमान अच्युत कल्प तक क्रमसे युगलरूपमें-सौधर्म-ऐशान, सानत्कुमारमाहेन्द्र व ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर आदिके क्रमसे-ऊपर-ऊपर अवस्थित हैं। इसके ऊपर एक-एक देवस्थान है-आरण-अच्युत कल्पके ऊपर तीन पटलोंमें नौ ग्रैवेयक, उनके ऊपर एक पटलमें नौ अनुदिश और उनके ऊपर एक पटलमें पाँच विजयादि अनुत्तर विमान अवस्थित हैं ।।८७॥
वहाँ देवलोकमें यह रात और दिनका विभाग नहीं है। कारण कि वहाँ नेत्रोंको सुख देनेवाली रत्नोंकी प्रभा अतिशय प्रकाशमान रहती है ॥८८॥ . वहाँपर वर्षाकाल, आतपकाल (ग्रीष्म ) और शीतादिकालसे रहित ऐसा निरन्तर सुख देनेवाला रमणीय काल प्रवर्तमान रहता है ।।८।।
१. All others except PM तदा। २. N ततश्चोर्ध्व, L ततो ऽप्यर्ध, S T FJX Y R ततो ऽप्यूर्व"। ३. All others except PM मेकैकत्रि। ४.J त्रिदिवास्पदे । ५.XY न यत्र त्रिदशालये। ६. N L T JR नेत्र for चक्षुः । ७. M N सौख्यदैः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org