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२९. शुद्धोपयोगविचारः 1582 ) 'निरुद्धज्योतिरज्ञो ऽन्तः स्वतो ऽन्यत्रैव तुष्यति ।
तुष्यत्यात्मनि विज्ञानी बहिर्गलितसंभ्रमः ॥७० 1583) यावदात्मास्थयादत्ते वाक्चित्तवपुषां व्रजम् ।
जन्म तावदमीषां तु भेदज्ञानाद्भवच्युतिः ॥७१ 1584 ) जीर्णे रक्ते घने ध्वस्ते' नात्मा जीर्णादिकः पटे ।
एवं वपुषि जीर्णादौ नात्मा जीर्णादिकस्तथा ।।७२
1582) निरुद्धज्योतिः-अज्ञातो* मूर्खः स्वतः आत्मतत्त्वतः अन्यत्र शरीरादौ तुष्यति मोदते। कोदृशो ऽज्ञातः । निरुद्धज्योतिर्नष्टात्मस्वरूपः । विज्ञानी आत्मनि तुष्यति। कीदृशः । बहिविगतभ्रमः* बाह्यगताज्ञानः । इति सूत्रार्थः ।।७०।। अथैतदेवाह ।
1583) यावदात्मास्थया-यावदात्मेच्छया वाक्चित्तवपुषां व्रज दत्ते, तावदमीषां वाचादीनां भेदज्ञानात् भवच्युतिः । इति सूत्रार्थः ।।७१।। आत्मज्ञानमाह।
___1584) जीर्णे रक्ते-यथा घटे* नात्मा जीर्णादिकः । कीदृशे घटे । जीर्णे रक्ते घने श्वेते । एवमात्मा न जीर्णादिक: वपुषि जीर्णादिके तथेति सूत्रार्थः ॥७२॥ अथ जगतो माहात्म्यं दर्शयति ।
चाहता हूँ-वह मैं नहीं हूँ और जो मैं हूँ वह परके द्वारा ग्राह्य नहीं है-वह मेरे द्वारा ही ग्रहण करने योग्य है, परके द्वारा वह ग्रहण करने योग्य नहीं है। इसलिए दूसरेको प्रबोधित करनेका मेरा प्रयत्न व्यर्थ है ॥६९।।
अज्ञानी बहिरात्मा अभ्यन्तरमें आत्मज्ञानरूप ज्योतिके आच्छादित रहनेसे अपनेसे भिन्न पर पदार्थों में सन्तुष्ट होता है, किन्तु ज्ञानी जीव बाह्य शरीरादिमें आत्मविषयक बुद्धिकी भ्रान्तिके नष्ट हो जानेसे अपनेआपमें ही सन्तुष्ट होता है ।।७०॥
प्राणी जब तक वचन, मन और शरीर इन तीनोंके समूहको आत्मबुद्धिसे ग्रहण करता है तभी तक उसका संसारपरिभ्रमण है। किन्तु भेदज्ञानसे-उक्त वचन आदि तीनोंको आत्मबुद्धिसे ग्रहण न करके परबुद्धिसे ग्रहण करनेपर-उसकी संसारसे मुक्ति है ।।७१।।
जिस प्रकार वस्त्रके जीर्ण, रक्त, सघन और नष्ट होनेपर आत्मा क्रमशः न जीर्ण होता है, न रक्त होता है, न सघन होता है, और न नष्ट होता है; उसी प्रकार शरीरके जीर्ण, रक्त, सघन और नष्ट होनेपर आत्मा भी क्रमसे जीर्ण, रक्त, सघन और नष्ट नहीं होता है । तात्पर्य यह कि जिस प्रकार वस्त्र अपनेसे सर्वथा भिन्न ही सबको प्रतीत होता है उसी प्रकार शरीरको भी आत्मासे पृथक् समझना चाहिए ॥७२॥
१. J Interchanges Nos. ७०-७१। २.J रज्ञातः । ३. All others except P विगत for गलित । ४. LS T F X Y R विभ्रमः, J बहिश्च विगतभ्रमः । ५.LS T JX Y R°दात्मेच्छयादत्ते, F°दात्मा स्थितिं धत्ते। ६. T FJY श्वेते for ध्वस्ते । ७. J घटे for पटे ।
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