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३४४ ज्ञानाणंवा
[१८.१४३1041 ) यद्यपि दुर्गतिबीजं तृष्णासंतापपापसंकलितम् ।
__तदपि न सुखसंप्राप्यं विषयसुखं वाञ्छितं नणाम् ॥१४३ । किं चे1042 ) विषयेषु भवेद्वाञ्छा संभवन्ती यथा यथा ।
तथा तथा मनुष्याणां तृष्णा विश्वं विसर्पति ॥१४४ 1013 ) अनिषिध्याक्षसंदोहं यः साक्षान्मोक्षमिच्छति ।
विदारयति दुर्बुद्धिः शिरसा स महीधरम् ॥१४५ 1041) यद्यपि-नृणां मनुष्याणां वञ्चितं विषयसुखम् । तदपि सुखसंप्राप्यं न भवसंतापपापव्याप्तम् । इति सूत्रार्थः ॥१४३॥ किं च युक्त्यन्तरमाह ।
1042) विषयेषु-यथा यथा कामाः वाञ्छाः संकल्पिताः अपि संभवन्ति । तथा तथा मनुष्याणां तृष्णा विश्वं सामस्त्यं वा जगद्विसर्पति प्रसरति । इति सूत्रार्थः ॥१४४॥ अथाक्षसमूहमनिर्जित्य मोक्षं वाञ्छतीत्याह।
1043) अनिषिध्य-यः पुमान् साक्षात् प्रकारेण मोक्षमिच्छति वाञ्छति । किं कृत्वा। अक्षसंदोहम् इन्द्रियसमूहम् अनिषिध्यानिवार्य । स दुर्बुद्धिः महीधरं पर्वतं शिरसा मस्तकेन विदारयति भिनत्तीति सूत्रार्थः ॥१४५॥ अथ पुनर्विषयसुखं हेयम् इत्याह । मालिनी ।
में जितना ही अधिक ईंधन डाला जाय उतनी ही वह अधिक बढ़ती है, किन्तु शान्त नहीं होती; उसी प्रकार प्राणीको जितने अधिक विषयभोग प्राप्त होते जाते हैं उतनी ही अधिक उसकी भोगाकांक्षा बढ़ती जाती है, किन्तु शान्त नहीं होती ॥१४२।।
मनुष्योंका अभीष्ट वह विषयसुख यद्यपि दुर्गतिका कारण तथा तृष्णा, सन्ताप एवं पापसे परिपूर्ण है तो भी वह उन्हें सुखपूर्वक-सरलतासे नहीं प्राप्त होता है। अभिप्राय यह है कि जो विषयसख पापका कारण होनेसे नरकादि दर्गतिको प्राप्त कराता है वह भी मनुष्योंको सरलतासे प्राप्त नहीं होता, किन्तु जिनके कुछ पूर्वोपार्जित पुण्य शेष होता है उन्हींको वह प्राप्त हुआ करता है ॥१४॥
दूसरे-जैसे-जैसे मनुष्योंको अभीष्ट कामभोग प्राप्त होते जाते हैं वैसे वैसे उनकी विषयतृष्णा विस्तृत होकर लोकको व्याप्त करती है-वह और भी अधिक बढ़ती जाती है ॥१४४।।
जो दुर्बुद्धि मनुष्य इन्द्रियोंके समूहका निषेध न करके उन्हें वश में करनेके बिना ही-साक्षात मोक्षकी इच्छा करता है वह मानो शिरसे पर्वतको विदीर्ण करता है । अभिप्राय यह है कि जिस प्रकार शिरसे आहत करके पर्वतका खण्डन करना असम्भव है, उसी प्रकार इन्द्रियोंको वश में करनेके बिना मोक्षकी प्राप्ति भी असम्भव है ॥१४५॥
१. MN तुच्छं for तृष्णा । २. PML कि च, F तद्यथा । ३. All others except P अपि संकल्पिता: कामाः संभवन्ति यथा । ४. All others except P मोक्तुमिच्छति ।
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