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ज्ञानार्णवः
[२८.११1481 ) तावन्मां पीडयत्येव भवोत्थविषमज्वरः। .
___ यावज्ज्ञानसुधाम्भोधि वगाहः प्रवर्तते ॥११ 1482 ) अहं न नारको नाम न तिर्यग्नापि मानुषः ।
न देवः किंतु सिद्धात्मा सर्वो ऽयं कर्मजः क्रमः ||१२ स्वाभाविकविशेषाः स्वाभाविको विशेषो येषां ते स्वाभाविकविशेषाः। अभूतपूर्वाः पूर्वं न भूताः । इति सूत्रार्थः ।।१०*१॥ अथ भवदाहस्य ज्ञाननाश्यत्वमाह ।
___1481) तावन्मां-भवोद्भवः* संसारजातः महादाहः तावत्पीडयत्येव । यावद् ज्ञानसुधाम्भोधेनिसुधासमुद्रस्य मोदगाहः प्रवर्तते । इति सूत्रार्थः ॥११।। अथात्मस्वरूपं निरूपयति।
1482) अहं न-आत्मा कथयति । अहं न नारको नामा। तिर्यक् नामा । सर्वत्र योज्यम् । नापि मानुषः नामा न देवः। किन्तु सिद्धात्मा सिद्धस्वरूपः । अयं सर्वो ऽप्यक्रमः चतुर्गतिपरिभ्रमः कर्मजः कर्मजनितः । इति सूत्रार्थः ।।१२।। अथ पुनरात्मा निरूपयति । संयुक्त होते हैं वे वास्तवमें अभूतपूर्व ही होते हैं। विशेषार्थ-अभिप्राय यह है कि संसारी जीवोंके अनादि कालसे विभावगुणव्यंजन पर्यायस्वरूप जो मतिज्ञानादि पाये जाते हैं वे विशेषतासे रहित होते हुए विकारसे उत्पन्न हुआ करते हैं। ये गुण सामान्यस्वरूपसे जीवके सदा ही रहते हैं, इसलिए सामान्यकी अपेक्षा ये असत्पूर्व नहीं हैं-उनका सद्भाव पूर्व में रहा ही है। परन्तु पर्यायस्वरूपसे चूँकि वे सदा समान नहीं रहते हैं उनकी अवस्था बदलती रहती है, इस दृष्टिसे वे सर्वथा सत्पूर्व भी नहीं हैं-शक्तिकी अपेक्षा पूर्व में उनके अस्तित्वके होते हुए भी व्यक्तिकी अपेक्षा उनका विवक्षित अवस्थामें पहले सद्भाव नहीं रहा है। तथा तपश्चरण व ध्यानादिके बलसे जीवके जो स्वभावगुण व्यंजनपर्यायस्वरूप अनन्तज्ञानादि प्रगट होते हैं वे अपनी स्वाभाविक विशेषतासे संयुक्त होते हुए असत्पूर्व ही हैं-शक्तिरूपसे अवस्थित रहनेपर भी उनका उस रूपमें पहले कभी किसी भी संसारी प्राणीके सद्भाव नहीं रहा है। यही एक संसारी और सिद्धकी विशेषता है-संसारी जीवके उक्त अनन्त ज्ञानादि शक्तिकी अपेक्षा विद्यमान होते हुए भी प्रगटमें नहीं पाये जाते हैं, परन्तु सिद्धके वे व्यक्त रूपमें आविर्भूत हो जाते हैं । इसी कारण उन्हें अभूतपूर्व कहा जाता है ॥१०*१।।
ध्यानमें योगी और भी विचार करता है-जब तक ज्ञानरूप अमृतके समुद्र में नहाना नहीं होता है तब तक संसारपरिभ्रमणसे उत्पन्न हुआ भयानक दुखरूप विषमज्वर मुझे पीड़ित ही करता रहेगा ॥११॥
___ मैं न नारकी हूँ, न तिर्यंच हूँ, न मनुष्य हूँ, और न देव हूँ; किन्तु स्वभावसे मैं सिद्धात्मा हूँ। ये सब नारकी आदि अवस्था विशेष कर्मजनित हैं-स्वाभाविक नहीं हैं ॥१२॥
१. All others except P'त्येव महादाहो भवोद्भवः । २. QN सुधाम्भोधेवि, M ज्ञानमहाम्भोधेर्नाव, others except P°म्भोधी नाव। ३. K मोद for नाव। ४. LS F K X Y R कर्मविक्रमः ।
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