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ज्ञानार्णवः
[२८.१७1487 ) ध्येयं वस्तु वदन्ति निर्मलधियस्तच्चेतनाचेतनं
स्थित्युत्पत्तिविनाशलाञ्छनयुतं मूर्तेतरं च क्रमात् । शुद्धध्यानविशीर्णकर्मकवचो देवश्च मुक्तेवरः
सर्वज्ञः सकलः शिवः स भगवान् सिद्धः परो निष्कलः ॥१७ 1488 ) अमी जीवादयो भावाश्चिदचिल्लक्ष्मलाञ्छिताः ।
तत्स्वरूपाविरोधेन ध्येया धर्मे मनीषिभिः ॥१८
1487) ध्येयं वस्तु-जीवाजीवरूपम् । पुनः कीदृशं ध्येयं वस्तु । स्थित्युत्पत्तिविनाशलक्षणयुतम्"। सुगमम् । च पुनः । क्रमादनुक्रमात् मूर्तेतरं शुक्लध्यानविशीर्णकर्मकवच: शुक्लध्याननाशितकर्मसन्नाहश्च देवः मुक्तेर्वरः। शेषं सुगमम् । इति सूत्रार्थः ॥१७॥ अथ पदार्थानाधेयत्वमाह। .
_1488) अमी जीवादयः-अमी जीवादयो भावा ध्येयाः । चिदचिल्लक्ष्मलाञ्छिताः चेतनाचेतनलक्षणोपलक्षिताः । कैः । मनीषिभिः। तत्स्वरूपाविरोधेन स्वस्वरूपापरिज्ञानेन । इति सूत्रार्थः ।।१८।। अथैतदेवाह ।
निर्मल बुद्धिके धारक गणधरादि जो वस्तु उत्पाद, व्यय और ध्रौव्यरूपलक्षणसे सहित है उसे ध्येय-ध्यानके योग्य-बतलाते हैं । वह वस्तु चेतन ( जीव ) और अचेतन (पुद्गल आदि पाँच दव्य) के भेदसे दो प्रकारकी है। उनमें चेतन तो अमत है.--रूप, रस, गन्ध व स्पर्शसे रहित है-परन्तु अचेतन क्रमसे मूर्त और अमूर्त भी है। अर्थात् पुद्गल द्रव्य मूर्त और शेष धर्म, अधर्म, आकाश और काल अमूर्त हैं। जिसने शुद्ध ध्यानके द्वारा निर्मल शुक्लध्यानके द्वारा-कर्मरूप कवचको नष्ट कर दिया है तथा जो समस्त पदार्थोंका ज्ञाताद्रष्टा है वह मुक्तिके द्वारा वरण किया जानेवाला देव (आप्त ) माना गया है । जो चार घातिया कर्मोको नष्ट करके अनन्त चतुष्टयको प्राप्त कर चुका है वह सकल (शरीरसहित) परमात्मा तथा जो आठों ही कर्मोको नष्ट करके आठ गुणोंको प्राप्त कर चुका है वह सिद्ध निष्कल (शरीरसे रहित हुआ) परमात्मा है। वह भगवान् परमात्मा स्व-परका कल्याण करनेवाला है ॥१७॥
बुद्धिमान मुनियोंको धर्मध्यानमें चेतन और अचेतन लक्षणोंसे चिह्नित इन जीवादि पदार्थोंका अपने-अपने स्वरूपके अनुसार ध्यान करना चाहिए ॥१८॥
१. N निर्मम । २. Q M L F K X Y लक्षणयुतं । ३. All others except P Q°ल्लक्ष । ४. पावरोधेन । ५. N धर्थे ।
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