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ज्ञानार्णवः
[२९.२७
1539 ) यः स्वमेव समादत्ते नादत्ते यः स्वतो ऽपरम् ।
निर्विकल्पः स विज्ञानी स्वसंवेद्यो ऽस्मि केवलः ॥२७ 1540 ) जातसर्पमतेर्यद्वच्छङ्खलायां क्रियाक्रमः ।
तथैव मे क्रियाः पूर्वास्तन्वादौ स्वमिति भ्रमात् ।।२८ 1541 ) शृङ्खलायां यथा वृत्तिविनष्टे भुजगभ्रमे ।
तन्वादौ मे तथा वृत्तिनिवृत्तात्ममृषामतेः ॥२९
1539) यः स्वमेव-यः स्वमेवात्मतत्त्वमेवादत्ते । स्वतः परं नादत्ते यः स ज्ञानी निर्विकल्पधीः स्वसंवेद्यो ऽस्ति केवलम् । इति सूत्रार्थः ॥२७॥ अथ दृष्टान्तेनात्मतत्त्वं द्रढयति ।
1540) जातसर्प-जातसर्पमतेः शृङ्खलायां रज्ज्वां यथा क्रियाभ्रमः* तथैव मे तन्वादौ क्रियापूर्वा स्वमिति मतिर्भवति । इति सूत्रार्थः ।।२८।। अथायमेवार्थः प्रगटीक्रियते।
__1541) शृङ्खलायां-यथा भुजगभ्रमे विनष्टे शृङ्खलायां प्रवृत्तिः तथा मे तन्वादौ वृत्तिवर्तनम् । वै निश्चितम् । कीदृशस्य मे। नष्टात्मविभ्रमस्येति सूत्रार्थः ॥२९॥ पुनरात्मविचारमाह।
जो स्वको-चैतन्यमय आत्माको-ही ग्रहण करता है, जो अपनेसे भिन्न अन्य किसी भी बाह्य पदार्थको नहीं ग्रहण करता है, जो सब प्रकारके संकल्प-विकल्पोंसे रहित है तथा जो विशिष्ट ज्ञानवान् होकर आत्मसंवेदनका विषय है-आत्मानुभवनके द्वारा जाना जाता है; वही एकमात्र मैं हूँ-अन्य नहीं हूँ ॥२७॥
जिस प्रकार सांकलको सर्प समझनेवाले मनुष्यकी उसके विषयमें चेष्टा होती हैवह उससे भयभीत होकर उसके घातादिमें प्रवृत्त होता है-उसी प्रकार भ्रमवश शरीरादिको स्व (आत्मा) मानकर उनके विषयमें मेरी भी पूर्व चेष्टाएँ रही हैं-मैं भी अज्ञानतासे शरीर एवं स्त्री-पुत्रादिको अपना मानकर अब तक उन्हींके संरक्षण और भरण-पोषण आदिमें खेदखिन्न रहा हूँ ॥२८॥
सर्पके भ्रमके नष्ट हो जानेपर जिस प्रकार मनुष्यकी प्रवृत्ति सांकलके विषयमें हुआ करती है उसी प्रकार शरीरादिमें आत्माकी जो भ्रान्तबुद्धि हो रही थी उसके हट जानेपर मेरी भी शरीर आदिमें उसी प्रकारकी प्रवृत्ति हो रही है। विशेषार्थ-अभिप्राय यह है कि जिस प्रकार सांकलमें उत्पन्न हुई सर्पकी भ्रान्तिके नष्ट हो जाने पर मनुष्य उससे भयभीत न होकर उसे सांकल जानता हुआ ही यथायोग्य प्रवृत्ति करता है उसी प्रकार शरीरादिमें उत्पन्न हुई आत्माकी भ्रान्तिके नष्ट हो जाने पर विवेकी जीव शरीरादिको आत्मासे भिन्न व जड़ जानता हुआ ही उसके प्रति जैसा व्यवहार करता है तथा आत्माके प्रति स्वत्वका . व्यवहार करता है ।।२९||
१. S T F JX Y R केवलम् । २. LJX ज्ञातसर्प, T F ज्ञानं सपयिते । ३. LS T F JX R क्रियाभ्रमः । ४. M ते for मे। ५. All others except P वृत्तिनष्टात्मविभ्रमस्य वै।
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