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ज्ञानार्णवः
(1383) उदये वामा शस्ता सितपक्षे दक्षिणा पुनः कृष्णे । त्रीणि त्रीणि दिनानि तु शशिसूर्यस्योदयः श्लाघ्यः ॥७८ 1384) उदयश्चन्द्रेण हितः सूर्येणास्तं प्रशस्यते वायोः ।
रविणोदये तु शशिना शिवमस्तमनं सदा नृणाम् ॥७९ 1385 ) सितपक्षे व्युदये प्रतिपद्दिवसे समीक्ष्यते सम्यक् । शस्तेतरप्रचारौ वायोर्यत्नेन विज्ञानी ॥८०
1383 ) उदये - सितपक्षे शुक्लपक्षे उदये उदयकाले शस्ता प्रधाना का वामा । पुनः । कृष्णे दक्षिणा शस्ता मनोहरा । तु पुनः । त्रीणि त्रीणि दिनानि शशिसूर्यस्योदयः श्लाघ्यः ॥ ७८ ॥ अथ पुनर्वामेतरयोर्विशेषमाह ।
[ २६.७८
1384) उदय: - चन्द्रेण उदयः हितः हितकारी । सूर्येणास्तं वायोः प्रशस्यते । नृणां मनुष्याणाम् । तु पुनः । रविणोदये शशिना अस्तमनं शिवं न भवति । इति सूत्रार्थः ॥७९॥ अथैतदेवाह ।
1385 ) सितपक्षे - सितपक्षे शुक्लपक्षे प्रतिपद्दिवसे यः विचारः सम्यक् समीक्ष्यते । कः । विज्ञानी । वायोः शस्तेतरप्रचारौ शुभाशुभविचारों । केन । यत्नेन । इति सूत्रार्थः ॥ ८० ॥ अथ प्रतिपद्दिवसानन्तरं फलाफलमाह ।
शुक्ल पक्ष में उदयमें वाम नाड़ी उत्तम मानी गयी है तथा कृष्ण पक्ष में उदयमें दक्षिण नाड़ी प्रशस्त मानी गयी है । चन्द्र ( वाम नाड़ी) और सूर्य ( दक्षिण नाड़ी ) का उदय तीन-तीन दिन प्रशंसनीय माना गया है । विशेषार्थ - अभिप्राय यह है कि शुक्ल पक्ष में सूर्योदयके समय प्रथम तीन दिन - प्रतिपद्, द्वितीया व तृतीया - तक यदि वाम नाड़ीका उदय है तो वह उत्तम माना जाता है। आगे तीन दिन - चतुर्थी, पंचमी और षष्ठी- -तक सूर्योदयकाल में यदि दक्षिण नाड़ीका उदय हो तो वह शुभ समझा जाता है । इस क्रमसे आगे भी क्रमशः तीन-तीन दिन वाम और दक्षिण नाड़ीको शुभ समझना चाहिए । कृष्ण पक्ष में सूर्योदय के समय प्रथम तीन दिन - प्रतिपद्, द्वितीया व तृतीया - तक यदि दक्षिण नाड़ीका उदय है तो वह उत्तम माना गया है । उपर्युक्त प्रकारसे आगे भी तीन-तीन दिन इस कृष्ण पक्षमें क्रमसे वाम और दक्षिण नाड़ीको उत्तम समझना चाहिए ॥ ७८ ॥
वायुका चन्द्र ( वाम स्वर ) के साथ उदय होकर सूर्य ( दक्षिण स्वर ) के साथ अस्त होना प्रशंसनीय है; तथा सूर्यके साथ उदय होनेपर चन्द्रके साथ उसका अस्त होना मनुष्यों के लिए हितकर है ॥ ७९ ॥
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शुक्ल पक्ष में प्रतिपद् के दिन सूर्योदयके समय वायुके संचारको विशिष्ट ज्ञानवान् योगी प्रयत्नपूर्वक शुभ और अशुभ देखे – उनके शुभ और अशुभ स्वरूपका विचार करे ||८०||
१. N दयस्तथा श्लाघ्यः । २. M णास्तः ।
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