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२६. प्राणायामः 1409 ) [उक्तं च
राज्यन्तयामवेलायां प्रसुप्ते कामिनीजने ।
ब्रह्मबीजं पिबेद्यस्तु बालाजीवं हरेन्नरः ॥१०११ 1410 ) तसहतरु ससि उप्परि किजइ सत्तवार ससि सूरहं णिज्जइ ।
तिण्णिवार पुणु अप्पा दिजइजो जाणह सो अमणु हविस्सइ।।१०१*२] 1411 ) अरिऋणिक चौरदुष्टा अपरे ऽप्युपसर्गविग्रहाद्याश्च ।
रिक्ताङ्गे कर्तव्या जयलाभसुखार्थिभिः पुरुषैः ॥१०२ 1412 ) रिपुशस्त्रसंग्रहारे रक्षति यः पूर्णगात्रभूभागम् ।
बलिभिरपि वैरिवगैर्न भिद्यते तस्य सामर्थ्यम् ॥१०३ • पूर्णाङ्गे निवेशितासु स्थापितासु। तासां चेतः त्वरितं ह्रियते। इति सूत्रार्थः ॥१०१।। [पुनस्तदेवाह ।
____1409-10 ) राज्यन्त-यो नरः रात्र्यन्तयामवेलायां उषःकाले। कामिनीजने प्रसुप्ते निद्रिते । ब्रह्मबीजं पिबेत् । सः बालाजीवं हरेत् बालां वशम् आनयेत् । तस्याभ्यन्तरः शशी उपरि क्रियते, सप्तवारान् शशी सूर्यस्य नीयते, त्रीन् वारान् पुनर् आत्मा दीयते, यः जानाति सो अमनस्कः भवति ॥ इति सूत्रार्थः ॥१०१* १-२॥ ] अथ शून्यस्वरफलमाह।
1411 ) अरिऋणिक-अरिऋणिकचौरदुष्टा वैरिअधमर्णदस्युदुष्टाः। रिक्ताङ्गे शुभाङ्गे कर्तव्याः । अपरे ऽपि उपसर्गविग्रहाद्याः म्लेच्छादिकृतदुर्वाक्यकलहाद्याः । कैः । जयलाभसुखाथिभिः पुरुषैः । इति सूत्रार्थः ।। १०२ ॥ अथैतदेवाह ।।
____1412 ) रिपुशस्त्र-यः पूर्णगात्रभूभागं रिपुशस्त्रसंप्रहारे रक्षति तस्य पुंसः सामर्थ्य बलिभिरपि न भिद्यते । क्व । वैरिवर्गे" । इति सूत्रार्थः ॥१०३ ॥ अथ गर्भविषयविचारमाह। जिस ओर नासिकाका स्वर परिपूर्ण हो उस ओर बैठानेपर- उनका मन शीघ्र ही हरा जाता है-वे शीघ्र वशमें हो जाती हैं। इसको छोड़कर वशीभूत करने के लिए अन्य कोई विशेष ज्ञान ( उपाय) नहीं है ।।१०१।।
कहा भी है-प्रातःकालमें स्त्रियोंके निद्रित रहनेपर जो मनुष्य ब्रह्मवीज पीता है वह बालिकाओंका मन आकृष्ट करता है ।।१०१+१।। उसके भीतर चन्द्रको ऊर्ध्वस्थानमें रखना चाहिये । सात बार चन्द्रको सूर्यकी तरफ ले लेना चाहिये । उसी तरह तीन बार फिर आत्मा
को दिया जाता है। इस तरह जो जानता है वह अमनस्क योगी होता है। (?) १०२*२।। - जो पुरुष विजय, लाभ एवं सुखकी इच्छा करते हैं उन्हें शत्रु, ऋणी ( कर्जदार), चोर, दुष्ट
तथा अन्य भी उपसर्ग एवं युद्ध आदिमें तत्पर रहनेवाले जनोंको रिक्त स्वरमें करना चाहिएजिस नासिकाछिद्रसे वायु न बहता हो उस ओर उन्हें स्थापित करना चाहिए ॥१०२।।।
शत्रुके द्वारा किये गये शस्त्रप्रहारमें जो पूर्णांगके भूभागकी-जिस ओर नासिकाका छिद्र परिपूर्ण हो उस ओरके प्रदेशकी रक्षा करता है उसके सामर्थ्यको बलवान् शत्रुओंके समूह भी खण्डित नहीं कर सकते हैं ।।१०३।। १. Only in N। २. M रिणकचोर, N रणिक, T रिणिक । ३. N निग्रहा।
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