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२६. प्राणायामः 1402 ) आयाति गतो वरुणे भौमे तत्रैव तिष्ठति सुखेन ।
यात्यन्यत्र श्वसने मृत इति वह्नौ समादेश्यम् ।।९५ 1403 ) घोरतरः संग्रामो हुताशने मरुति भङ्ग एव स्यात् ।
गगने सैन्यविनाशं मृत्यु युद्धपृच्छायाम् ॥९६ 1404 ) ऐन्द्रे विजयः समरे ततो ऽधिको वाञ्छितश्च वरुणे स्यात् ।
सन्धिर्वा रिपुभङ्गात् स्वसिद्धिसंसूचनोपेतः ।।९७
1402 ) आयाति-वरुणे वरुणतत्त्वे गतो प्रवासी आयाति । भौमे पार्थिवे तत्त्वे तत्रैव तिष्ठति । सुखेन याति अन्यत्र वायुतत्त्वे । वह्नितत्त्वे मृत इति समादेश्यं वक्तव्यम् । इति सूत्रार्थः ॥९५।। अथ पुनर्विशेषमाह ।
____1403 ) घोरतरः-घोरतरः संग्रामो हुताशने । मरुति भङ्गः स्यात् । गगने आकाशतत्त्वे सैन्यविनाशः* कटकनाशः ॥९६।। अथ पुनस्तत्त्वानामेव फलमाह ।
1404. ) ऐन्द्र विजयः-ऐन्द्रे पार्थिवे तत्त्वे समरे संग्रामे विजयः स्यात् । वरुणे वरुणतत्त्वे । चकारात् ततोऽधिको विजयः वाञ्छितः । वा अथवा । संधिः सीमास्थापनम् । कस्मात् । रिपुभङ्गात् । विजयः स्वसिद्धिसंसूचनोपेतः स्वार्थकथनयुक्तः । इति सूत्रार्थः ॥९७॥ अथ पुनस्तेषामेव फलमाह।
यदि कोई अन्यत्र गया है तो उसके विषयमें प्रश्न किये जानेपर वरुण मण्डलके उदयमें यह उत्तर दे कि अन्यत्र गया हुआ वह मनुष्य वापस आ जाता है। यदि उस समय पार्थिव मण्डलका उदय है तो उसके वहींपर सुखपूर्वक स्थित रहनेकी सूचना करना चाहिए। पवन नामक मण्डलका उदय होनेपर 'वह अन्यत्र जानेवाला है' इस प्रकार उत्तरमें कहना चाहिए । तथा यदि उस समय अग्निमण्डलका उदय है तो 'वह मर चुका है' ऐसा निर्देश करना चाहिए ॥१५॥
अग्नि मण्डलके वर्तमान रहते हुए युद्धविषयक प्रश्नके करने पर अतिशय भयानक युद्ध " होना सम्भव है, पवन नामक मण्डलके होते हुए उक्त प्रश्न पूछे जानेपर विनाश (अथवा उसमें पराजय ) होता है, आकाश मण्डलमें सैन्यका विनाश या मृत्यु होती है ॥९६।।
पुरन्दर मण्डलके होनेपर यदि उपर्युक्त प्रश्न किया जाय तो युद्ध में विजय होगी, तथा वरुण मण्डलके रहते हुए युद्धविषयक प्रश्नके करनेपर उससे भी अधिक अभीष्ट सिद्ध होगा, अथवा शत्रुके पराजित होनेसे अपनी सिद्धिको सूचित करनेवाली सन्धि होगी ॥२७॥
१. LS श्वसनैर्मत । २. M N समादेश्यः। ३. F घोरतरे। ४. . F संग्रामे विनाशो।
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