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XXVI
[प्राणायामः ]
1302 ) सिद्धक्षेत्रे महातीर्थे पुराणपुरुषाश्रिते |
कल्याणकलिते पुण्ये ध्यानसिद्धिः प्रजायते ॥१ 1303 ) सागरान्ते वनान्ते वा शैलशृङ्गान्तरे ऽथवा ।
पुलिने पद्मखण्डान्ते प्राग्भारे शालसंकटे ॥२ 1304 ) सरितां संगमे द्वीपे प्रशान्ते' तरुकोटरे ।
जीर्णोद्याने श्मशाने वा गुहागर्भे विजन्तुके ॥३
1302 ) सिद्धक्षेत्रे-कल्याणकलिते जन्मदीक्षादिकल्याणस्थाने। शेषं सुगमम् ॥१॥ अथ पुनरपि स्थानयोग्यतामाह ।
__1303 ) सागरान्ते-पुलिने नद्यादिकूले, पद्मखण्डान्ते पद्मोद्याने, प्राग्भारे, अतिशालसंकटे वृक्षसंकीर्णे । शेषं सुगमम् । इति सूत्रार्थः ।।२।। [ पुनस्तदेवाह । ]
_1304 ) सरितां-सरितां नदीनां संगमे मेलापके। द्वीपे समुद्रान्तनगराकारे । तरुकोटरे वृक्षसुषिरस्थाने। कीदृशे प्रसन्ने । पुनः कुत्र। जीर्णोद्याने। वा अथवा । श्मशाने, गुहागर्भे दरीमध्ये । विजन्तुके जन्तुरहितस्थाने । इति सूत्रार्थः ॥३।। पुनानार्हस्थानमाह ।
___ ध्यानके योग्य स्थान-ध्यानकी सिद्धि सिद्धक्षेत्रमें, ऋषि-महर्षि आदि किन्हीं पुरातन पुरुषोंसे अधिष्ठित अन्य उत्तम तीर्थमें और तीर्थंकरके गर्भ-जन्मादि कल्याणकोंसे सम्बद्ध पवित्र क्षेत्रमें होती है। अभिप्राय यह है कि ध्याता योगीको ध्यानके लिए किसी ऐसे पवित्र स्थानको देखना चाहिए जहाँसे कोई भव्य जीव मुक्तिको प्राप्त हुआ हो, जहाँ कुछ कालके लिए किसी महापुरुषका निवास रहा हो, अथवा जहाँपर किसी तीर्थकरका कोई कल्याणक सम्पन्न हुआ हो। १॥
संयमका साधक योगी संसारपरिभ्रमणके दुखको शान्त ( नष्ट) करने के लिए समुद्र के समीपमें, वनके अन्तमें, पर्वतशिखरोंके मध्यमें, नदी आदिके तटपर, पद्मसमूहके अन्तमें, पर्वतके शिखरपर या गुफामें, वृक्षोंसे संकीर्ण स्थानमें, नदियोंके संयोगस्थानमें, द्वीप (जलसे
१. M L Y कल्पिते। २. P सिद्धिप्रदायके। ३. Y पद्मपण्डे वा। ४. All others except PM N K प्राकारे । ५. All others except P R प्रसन्ने, R प्रशस्ते।
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