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ज्ञानार्णवः
[१६.१७837 ) लुप्यते विषयव्यालेभिद्यते मारमार्गणैः ।
रुध्यते वनिताव्याधैर्नरः संगैस्तरङ्गितः ॥१७ 838 ) यः संगपङ्कनिर्मग्नो ऽप्यपवर्गाय चेष्टते ।
स मूढः पुष्पनाराचैर्विभिन्यास्त्रिदशाचलम् ॥१८ 839 ) अणुमात्रादपि ग्रन्थान्मोहग्रन्थिदृढीभवेत् ।
विसर्पति ततस्तृष्णा यस्यां विश्वं न शान्तये ॥१९ 840 ) परीषहरिपुवातं तुच्छवृत्तैकभीतिदम् ।
वीक्ष्य धैर्य विमुञ्चन्ति यतयः संगसंगताः ॥२० 837 ) लुप्यते-नरो मनुष्यः संगेः परिग्रहैरभिद्रतः पीडितः । विषयव्यालेविषयसपैः लुप्यते । मारमार्गणैः कामबाणैर्भिद्यते। वनिताव्याधैः स्त्रीलुब्धकैः रुध्यते । इति सूत्रार्थः ॥१७॥ अथ परिग्रहस्य मोक्षाभावमाह ।
___838 ) य: संग-यः संगपङ्कनिर्मग्नो ऽप्यपवर्गाय चेष्टते मोक्षाय यतते स मूढो मूर्खः पुष्पनाराचेः पुष्पबाणैः । त्रिदशाचलं सुरगिरि, विभिन्द्यात् विशेषेण भिन्द्यात् । इति सूत्रार्थः ॥१८॥ अथ स्तोको परिग्रहः मोहस्य कारणमाह।
839 ) अणुमात्रादपि-अणुमात्रात् स्तोकतरादपि ग्रन्थात् । मोहग्रन्थिः दृढोभवेत् । ततो मोहग्रन्थेः तृष्णा विसर्पति । यस्यां तृष्णायां विश्वं जगन्न शान्तये । इति सूत्रार्थः ।।१।। अथ धैर्यविलोपकत्वं संगस्याह।
840 ) परीषह-यतयः संगसंगिताः संगव्याप्ताः धैर्य विमुञ्चन्ति । परीषहरिपुवातं वीक्ष्य । कोदृशम् । तुच्छ चारैकभयदम् । इति सूत्रार्थः ।।२०।। अथ परिग्रहस्य सर्वघातकत्वमाह ।
परिग्रहसे तरंगित ( व्याकुल ) मनुष्य विषयरूप सर्पोके द्वारा नष्ट किया जाता है, कामके बाणोंसे भेदा जाता है, तथा स्त्रीरूप व्याधोंके द्वारा रोका जाता है। अभिप्राय यह है कि परिग्रह में आसक्त रहनेवाला मनुष्य विषयभोगोंमें अनुरक्त होकर पापको उपार्जित करता है और उससे दुर्गतिके दुःखको सहता है ॥१७॥
__जो मनुष्य परिग्रहरूप कीचड़में फँसकर मोक्षके लिए प्रयत्न करता है वह मूर्ख फूलों , . के बाणोंसे मानो मेरु पर्वतको खण्डित करता है। तात्पर्य यह कि परिग्रहमें आसक्त रहते हुए मोक्षकी प्राप्ति सर्वथा असम्भव है ॥१८॥
परमाणुप्रमाण भी परिग्रहसे मोहकी गाँठ अतिशय दृढ़ होती है और फिर उससे तृष्णा विस्तारको प्राप्त होती है, जिसमें कि समस्त लोक भी शान्तिके लिए नहीं होता है । अभिप्राय यह है कि थोड़े-से भी परिग्रहके मोहसे जो उत्तरोत्तर विषयतृष्णा वृद्धिंगत होती है उसकी पूर्ति विश्वमें जितनी भी इष्ट सामग्री है उस सब के प्राप्त हो जानेपर भी नहीं होती है ॥१०॥
परिग्रहमें आसक्त रहनेवाले मुनि थोड़ेसे संयमका पालन करनेवाले व्रतीजनोंको १. M N S F VJ X Y R संगैरभिद्रुतः; L T संगैरुपद्रुतः ।
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