________________
३००
ज्ञानार्णवः
[१८.९२१
895 ) ['उक्तं च
कर्केशा परुषा कट्वी निष्ठुरा परकोपिनी ।
छेद्याङ्कुरो मध्यकृशातिमानिनी भयंकरी ॥९४१ 896 ) भूतहिंसाकरी चेति दुर्भाषां दशधा त्यजेत् ।।
हितं मितमसंदिग्धं स्याद्भाषासमितिर्वदेत् ॥९७२ ] भाषां गदतो वदतः। कीदृशी भाषाम् । दशदोषविनिर्मुक्ताम् ॥९॥ दोषागां दशत्वमेवाह [ उक्तं च ]
895-96 ) कर्कशा-श्लोकद्वयं सुगमम् । एतैर्दोषैविनिर्मुक्ताम् । पुनः कोदशों भाषाम् । सूत्रोक्ताम् । सुगमम् । पुनः कोदृशीम् । साधुसंमतां साधुयोग्याम् । इति सूत्रार्थः ।।९२१-२॥ अथैषणासमितिमाह। स्तित्ववादी) किया करते हैं तथा जो शंका, संकेत (दुराचारी जनका व्यभिचारविषयक इशारा ) एवं पापसे परिपूर्ण है उसका बुद्धिमान् मनुष्योंको परित्याग करना चाहिये । मुनि जो दस दोषोंसे रहित और साधुओंसे सम्मत आगमानुकूल भाषाका व्यवहार करता है उसका नाम भाषासमिति है ॥ ८-९॥
___ कहा भी है-भाषासमितिका धारक मुनि कर्कशा, परुषा, कट्वी, निष्ठुरा, परकोपिनी, छेदंकरा, मध्यकृशा, अतिमानिनी, भयंकरी और भूतहिंसाकरी; इस दस प्रकारकी दुष्ट भाषाको छोड़कर हित, मित और सन्देहरहित वचनको बोले ॥ विशेषार्थ-जो भाषा ( वचन व्यवहार) सन्तापको उत्पन्न करनेवाली हो वह कर्कशा कहलाती है । जैसे-तू मूर्ख है, कोरा बैल है और कुछ नहीं जानता है आदि । जिसके सुननेपर मर्मको कष्ट पहुंचे वह परुषा भाषा कही जाती है। जैसे-तू अनेक दोषोंसे दुष्ट है आदि। जो भाषा उद्वेगको उत्पन्न करती हो उसे कट्वी कहते हैं। जैसे-तू जातिसे निकृष्ट है, पापी है आदि । जो भाषा निर्दयतासे परिपूर्ण हो उसे निष्ठुरा समझना चाहिये । जैसे-मैं तुझे मार डालूँगा, तेरा शिर धड़से अलग कर दूंगा आदि । जिसको सुनकर दूसरेके हृदयमें क्रोध उत्पन्न हो सकता हो उसे परकोपिनी कहते हैं। जैसे-तेरे तपश्चरणमें क्या बल है, तू निर्लज्ज है आदि। जो भाषा व्रत, शील व गुण आदिको नष्ट करनेवाली हो वह छेदंकरा कही जाती है, अथवा जो दूसरे में अविद्यमान दोषोंको प्रगट करनेवाली हो उसे छेदंकरा समझना चाहिये। जो हड्डियों के मध्यभागको भी कृश करती हो ऐसी अतिशय कठोर भाषा मध्यकृशा कहलाती है। जिस भाषाके द्वारा अपनी महिमाको तथा अन्यकी निन्दाको प्रगट किया जाता है उसका नाम अतिमानिनी है। जो भाषा भयको उत्पन्न करनेवाली होती है वह भयंकरी कही जाती है। जो भाषा प्राणिहिंसामें प्रवृत्त कराती है वह भूतहिंसाकरी कहलाती है। यह दस प्रका भाषा भाषासमितिको नष्ट करनेवाली है। इसीलिए भाषासमितिका धारक साधु ऐसी किसी
१. P N om. | २. F v Y छेदाङ्करा । ३. F कृशा भयंकरोति मानिनी, V भयंकयोतमानिनी, Y कृशा तिग्मा नित्यभयंकरी । ४. PN om. । ५. SR समितिर्मुनेः, T समितिर्वदन, Y समिती वदन ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org