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-१२०] १८. अक्षविषयनिरोधः
३३७ 1016 ) कषायवैरिव्रजनिर्जयं यमी करोतु पूर्वं यदि संवृतेन्द्रियः । किलानयोर्निग्रहलक्षणो विधिर्न हि क्रमेणात्र बुधैर्विधीयते ॥
११८ । तद्यथा1017 ) यदक्षविषयोद्भूतं दुःखमेव न तत्सुखम् ।
अनन्तजन्मसंतानक्लेशसंपादक यतः ॥११९ 1018 ) दुर्दमेन्द्रियमातङ्गान् शीलशाले नियन्त्रय ।
वीर विज्ञानपाशेन विकुर्वाणान् यदृच्छया ॥१२० 1016) कषायवैरि-यमी व्रती कषायवैरिव्रजनिर्जयं कषायशत्रुसमहजयं यदि पूर्व करोतु । कीदशः । संवतेन्द्रियः । किलेति सत्ये । अनयोः इन्द्रियकषाययोनिग्रहलक्षणः विनाशात्मको विधिः । अत्र लोके । हि निश्चितम् । क्रमेण न बुधैः पण्डितैः विधीयते क्रियते । इति सूत्रार्थः ।।११८॥ तद् यथा दर्शयति । अथाक्षसंभूतं दुःखम् आह ।
____1017) यदक्ष-अक्षविषयोद्भूतं इन्द्रियव्यापारजनितं यद् दुःखं तत् सुखं न भवति । यतो यस्मात् कारणात् । अनन्तजन्मसंतानक्लेशसंपादकम् अनन्तभवसमूहक्लेशजनकम् इति सूत्रार्थः ॥११५।। अथेन्द्रियाणां दुर्दमत्वम् आह ।
___1018) दुर्दमेन्द्रिय-हे *धीर, दुर्दमेन्द्रिय-मातङ्गान् हस्तिनः शीलशाले स्तम्भे ब्रह्मचर्यमहावृक्षे नियन्त्रय बध्नीहि । केन । विज्ञानपाशेन ॥१२०।। साधनोपायमाह।
यदि मुनि पूर्वमें इन्द्रियोंका निरोध कर चुका है तो वह कषायरूप शत्रुओंपर विजय प्राप्त करे । कारण यह कि विद्वान् महात्मा इन दोनोंके मध्यमें निग्रह करनेरूप विधिको विधान क्रमसे नहीं करते हैं। तात्पर्य यह है कि इन्द्रियनिग्रह और कषायनिग्रहमें पूर्वापरताका क्रम नियत नहीं है-यदि मुनि पूर्वमें इन्द्रियोंका निग्रह कर चुका है तो तत्पश्चात् उसे कषायोंका निग्रह करना चाहिए और यदि पूर्व में वह कषायोंका निग्रह कर चुका है तो तत्पश्चात् उसे इन्द्रियोंका निग्रह करना चाहिए ॥११८॥
वह इस प्रकारसे-इन्द्रियविषयोंसे उत्पन्न हुआ सुखका आभास वस्तुतः दुख ही है, वह सख नहीं है। कारण यह कि वह विषयसुख अनन्त संसारकी परम्पराके क्लेशको उत्पन्न करनेवाला है ॥११९॥
हे वीर ! स्वतन्त्र रहकर इच्छानुसार उपद्रव करनेवाले दुर्दम इन्द्रियरूप हाथियों को विज्ञानरूप रस्सीसे शीलरूप वृक्षमें नियन्त्रित कर उससे बाँध दे । अभिप्राय यह है कि जिस प्रकार हाथी स्वतन्त्र रहकर चूँकि अनेक प्रकारके उपद्रव करता है, अतएव चतुर महावत उसे मोटे रस्सेके आश्रयसे किसी वृक्ष या खम्भेसे बाँध देता है, उसी प्रकार ये इन्द्रियाँ भी चूंकि स्वतन्त्र रहकर इच्छानुसार स्पर्शादि विषयोंमें प्रवृत्त होती हुई राग-द्वेष-बुद्धिको उत्पन्न करती हैं, अतएव विवेकी मुनि उन्हें कुशलतापूर्वक संयममें प्रवृत्त करते हैं ॥१२०॥ १. P M L F X तद्यथा । २. X Y संपादनक्षमम् । ३. All others except P धीर । ४. All others except P T विकुर्वन्तो ।
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