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-११ ] १८. अक्षविषयनिरोधः
३०१ 897 ) उद्गमोत्पादसंभूत धूमाङ्गारादिकल्पितैः ।
__दोषैर्मलैर्विनिर्मुक्तं विघ्नशङ्कादिवर्जितम् ॥१० 898 ) शुद्धं काले परैर्दत्तमनुद्दिष्टमयाचितम् ।
वल्भतोऽन्नं मुने या ऍषणासमितिः परा ॥११ 897-98 ) उद्गमोत्पाद-एषेषणासमितिर्मुने या ज्ञातव्या । यस्यामदत्तान्नं न गृह्यते । कोदृशम् । शुद्धम् । अष्टप्रकारपिण्डशुद्धिनिर्मलम् । तथा चोक्तम् । “उग्गम-उप्पादण-एसणं च संयोजणं पमाणं च । इंगालधूमकारण अट्ठविधा पिंडसुद्धी दु।" उद्गतिरुत्पद्यते यैरुपायैर्दातपात्रगतैराहारादिस्ते उद्गमदोषाः । उत्पद्यते निष्पाद्यते येरभिप्रायैः पात्रगतैः आहारादिस्ते उत्पादनदोषाः आहारार्थानुष्ठानविशेषाः । अश्यते भुज्यते तेभ्यः पारिवेषकेभ्यः तेषामशुद्धयो अशनदोषाः। संयोज्यन्ते संयोजनमात्रं वा संयोजनदोषः। प्रमाणातिरेकः प्रमाणदोषः। अङ्गारमिव चारित्रं करोति सो ऽङ्गारदोषः। धूम इव धूमदोषः। कारणं निमित्तं कारणदोषः। एतैरष्टभिर्दोषैविनिर्मुक्तं रहितं मलैविनिर्मुक्तम् । पुनः कीदृशम् । विघ्नशङ्कादिवजितम् अन्तरायद्वात्रिंशकेन वजितम्। पुनः कोदृशम् । काले भोजनकाले परैः श्राद्धैर्दत्तम् । अनुद्दिष्टं उद्देशरहितम् अयाचितमिति सूत्रद्वयार्थः ॥१०-११॥ अथादानसमितिमाह । भी भाषाका उपयोग न करके निरन्तर हितकारक व परिमित भाषण करता है। उसके वचन सन्देहको दूर करनेवाले होते हैं ॥९*१-२॥
जो मुनि भोजनके उद्गम और उत्पादनसे उत्पन्न दोषोंसे. धम और अंगार आदि (प्रमाण व संयोजन ) से कल्पित दोषोंसे तथा मल दोषोंसे हीन और विघ्न ( अन्तराय) व शंका आदि ( मलदोष ) से रहित दूसरों ( श्रावकों ) के द्वारा समयपर दिये गये शुद्ध, अनुद्दिष्ट एवं अयाचित भोजनको ग्रहण करता है उसके उत्कृष्ट एषणासमिति जानना चाहिये ।। विशेषार्थ-अभिप्राय यह है कि दाताके द्वारा योग्य समयपर विधिपूर्वक दिये गये निर्दोष ( उद्गमादि दोषोंसे रहित ) भोजनको दिनमें एक बार ग्रहण करना, इसका नाम एषणासमिति है। इस समितिका धारक मुनि जिन दोषोंको दूर कर आहारको ग्रहण करता है वे छयालीस (४६) हैं जो इस प्रकार हैं-१६ उद्गमदोष, १६ उत्पादनदोष, १० एषणादोष, १ संयोजन, १ प्रमाण, १ अंगार और १ धूम । दाताके जिन मार्गविरोधी क्रियाभेदों (व्यापार विशेषों ) के द्वारा भोजन उत्पन्न होता है वे उद्गमदोष कहलाते हैं। ये उद्दिष्ट व साधिक आदिके भेदसे सोलह हैं । मुनिके जिन मार्गविरोधी क्रियाभेदों के द्वारा भोजन उत्पन्न कराया जाता है वे उत्पादनदोष कहे जाते हैं । ये धात्री, दूत व निमित्त आदिके भेदसे सोलह हैं। भोजनसम्बन्धी दोषोंका नाम एषणादोष है। ये शंकित, पिहित व म्रक्षित आदिके भेदसे दस होते हैं। शीत भोजनके उष्ण जलादिसे अथवा शीत जलादिके उष्ण भोजनसे किये जानेवाले संयोगका नाम संयोजनदोष है । प्रमाणसे अधिक आहारके ग्रहण करनेपर प्रमाण दोष होता है । गृद्धि के साथ भोजनका ग्रहण करना, यह अंगारदोष है । अनिष्ट समझकर १. All others except P°दसंस्तै—....'दिगस्तथा। २. All others except P अदतो ऽन्नं । ३. N चैषणा।
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