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ज्ञानार्णवः
[१६.९829 ) अन्तर्बाह्य भुवोः शुद्धयोर्योगायोगी विशुध्यति ।
न ह्येकं पत्रमालम्ब्य व्योम्नि पत्री विसर्पति ॥९ 830 ) साध्वीयं स्याद् बहिःशुद्धिरन्तःशुद्धयात्र देहिनाम् ।
फल्गुभावं भजत्येव बाह्या त्वाध्यात्मिकीं' विना ॥१० 831 ) संगात्कामस्ततः क्रोधस्तस्माद्धिंसा तयाशुभम् ।
तेन श्वाभ्री गतिस्तस्यां दुःखं वाचोमगोचरम् ॥११ 832 ) संग एव मतः सूत्रे निःशेषानर्थमन्दिरम् ।
येनासन्तो ऽपि सूयन्ते रागाद्या रिपवः क्षणे ॥१२ 829 ) अन्तर्बाह्य-योगी विशुध्यति । कस्मात् । अन्तर्बाह्य भुवोः अन्तरङ्गबाह्यजातयोविशुद्धयोर्योगात् संबन्धात् । हि निश्चितम् । एक पक्षमालम्ब्याश्रित्य, व्योम्नि आकाशे, पत्री पक्षो विसर्पति गच्छति । इति सूत्रार्थः ॥९॥ अथाभ्यन्तरशुद्धया बाह्यशुद्धिमाह ।
____830 ) साध्वीयं-अत्र जगति देहिनाम् अन्तःशुद्धया इयं बहिः शुद्धिः साध्वी स्यात् । आध्यात्मिकी शद्धि विना बाह्या शद्धिः । तु पनरर्थे । फल्गभावं व्यर्थतां भजत्येव । इति सत्रार्थः ॥१०॥ अथ संगस्य परम्परया नरकदुःखहेतुत्वमाह।
831 ) संगाकामः-तेनाशुभेन । श्वाभ्री गतिः नरकगतिः। तस्यां दुःखं वाचामगोचरं वचनातीतम् । शेषं सुगमम् । इति सूत्रार्थः ।।११।। अथ संगस्य सर्वानर्थकारणतामाह ।
__832 ) संग एव-येन संगेन असतो ऽपि अविद्यमाना अपि । शेषं प्रसिद्धम् । इति सूत्रार्थः ॥१२॥ अथ संगेन मुनेः क्षान्त्यादिधर्मा नश्यन्ति इत्याह ।
योगी अभ्यन्तर और बाह्य इन दोनों ही शुद्धियों के सम्बन्धसे विशुद्धिको प्राप्त होता है । ठीक है-पक्षी आकाशमें जो गमन करता है वह कुछ एक पंखके आश्रयसे नहीं करता है, किन्तु दोनों ही पंखोंके आश्रयसे करता है। अभिप्राय यह है कि मुक्ति बाह्य और अभ्यन्तर दोनों ही प्रकारके परिग्रहसे रहित हो जाने पर प्राप्त होती है, न कि केवल बाह्य परिग्रहसे ही रहित हो जाने पर ॥९॥
लोकमें प्राणियोंकी यह बाह्यशुद्धि अभ्यन्तर शुद्धिके साथ योग्य होती है । परन्तु उस अभ्यन्तर शुद्धि के विना अकेली बाह्यशुद्धि व्यर्थ ही होती है ॥१०॥
परिग्रहसे विषयवांछा उत्पन्न होती है, फिर उस विषयवांछासे क्रोध, उस क्रोधसे हिंसा, उससे अशुभ कर्मका उपार्जन, उससे नरकगतिकी प्राप्ति और वहाँ पर अनिर्वचनीय दुःख होता है ।। ११ ॥
आगममें समस्त अनर्थोंका स्थान यह परिग्रह ही माना गया है। इसका कारण यह है कि उसके प्रभावसे यदि क्रोधादि न भी हों तो भी वे क्षणभरमें ही उत्पन्न हो जाते हैं ॥१२॥ १. M N°त्मिकं । १. T वाचाप्तगो ।
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